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________________ सूत्र ४३२-४३३ तिर्यक् लोक : कूट वर्णन गणितानुयोग २७१ छप्पणं वासहरकूडा वर्षधर पर्वतों के छप्पन कूट१. चुल्लहिमवंतवासहरपव्वए एक्कार सकूडा- १. क्षुद्रहिमवन्त वर्षधर पर्वत के इग्यारह कूट४३२.५०-चुल्लहिमवंते णं भंते ! वासहरपब्वए फइ कूडा ४३२. प्र०-हे भगवान ! क्षुद्र हिमवन्त वर्षधर पर्वत पर कितने पण्णत्ता? कूठ कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! इक्कारस कूडा पण्णत्ता, तं जहा- उ०-हे गौतम ! इग्यारह कूट कहे गये हैं, यथा१ सिद्धाययणकूडें, २ चुल्लहिमवंतकूडे, ३ भरहकूडे, (१) सिद्धायतनकूट, (२) क्षुद्र हिमवान्कूट, (३) भरतकूट, ४ इलादेवी कूडे, ५ गंगादेवीकूडे, ६ सिरिदेवोकूडे, (४) इलादेवीकूट, (५) गंगादेवीकूट, (६) श्रीदेवीकूट, (७) ७ रोहिअंसकूडे, ८ सिंधुदेवीकूडे, ६ सूरादेवीकूडे, रोहितांसाकूट, (८) सिंधुदेवीकूट, (६) सुरादेवीकूट, (१०) १० हेमवयकूडे, ११ वेसमणकूडे । हैमवतकूट, (११) वैश्रमणकूट । -जंबु० वक्ख० ४, सु० ७५ सिद्धाययणकूडस्स अवट्टिई पमाणं च सिद्धायतन कूट की अवस्थिति और प्रमाण४३३. प०–कहि णं भंते ! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धाययण- ४३३. प्र०-हे भगवन् ! क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत का कूडे णामं कूडे पण्णते ? 'सिद्धायतन कूट नामक कूट कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! पुरच्छिम-लवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्ल- उ०-हे गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में, क्षुद्र हिमवंतकूडस्स पुरस्थिमेणं-एत्थ णं सिद्धाययणकूडे हिमवान् कूट से पूर्व में सिद्धायतन कूट' नामक कूट कहा णामं कूडे पण्णत्ते। गया है। पंच जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं । यह पांच सौ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है । मूले पंचजोयणसयाई विक्खंभेणं । मूल में पांच सौ योजन चौड़ा है। मज्झे तिणि अ पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं । मध्य में तीन सौ पचहत्तर योजन चौड़ा है । उप्पि अड्वाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं । ऊपर अढाई सौ योजन चौड़ा है। (क्रमशः पृष्ठ २७० का) २ तेषां भूमिप्रतिष्ठतत्वेन स्वतन्त्रकूटत्वात् । - जम्बू० वक्ष० ६, सूत्र १२५ की वृत्ति ३ एषां गिर्यनाधारकत्वेन स्वतन्त्रगिरित्वान्न कूटेषुगणना । -जम्बू० वक्ष० ६, सूत्र १२५ की वृत्ति मेरु पर्वत के चार दिशाओं में स्थित चार रुचक पर्वतों के बत्तीस कूटों की गणना भी जम्बूद्वीप स्थित पर्वत कूटों की गणना में सम्मिलित नहीं है-(३२ पर्वतों के नाम इस प्रकार हैं-) "जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं रुयगवरे पव्वए अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहागाहा-(१) रिट्ठ (२) तवणिज्ज (३) कंचण, (४) रयत (५) दिसासोत्थिए (६) पलंबे य । (७) अंजणे (5) अंजणपुलए, रुयगस्स पुरथिमे कूडा ॥" "जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेगं स्यगवरे पव्वए अट्ठ कूडा पण्णता, तं जहागाहा-(१) कणए (२) कंचणे, (३) पउमे, (४) णलिणे (५) ससि (६) दिवायरे चेव । (७) वेसमणे (८) वेरुलिए, रुयगस्स उ दाहिणे कूडा ।।" "जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पव्वए अट्ठकूडा पण्णत्ता, तं जहागाहा-(१) सोत्थिते य (२) अमोहे य, (३) हिमवं (४) मंदरे तहा । (५) रुयगे (६) रुयगुत्तमे (७) चंदे, अट्ठमे य (८) सुदंसणे ।।" "जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुयगवरे पब्बए अट्ठ कूडा पणत्ता, तं जहागाहा-(१) रयण (२) रयणुच्चए या (३) सब्बरयण (४) रयणसंचए चेव । (५) विजये य (६) वेजयंते, (७) जयंते, (८) अपराजिते ।।" -ठाणं ८, सु० ६४३
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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