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सूत्र ३६२
तिर्यक् लोक : दो यमक पर्वत
तासि णं सभाणं सुहम्माणं छच्चमणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पुरत्थिमेणं दो साहस्सीओ पण्ण ताओ, पच्चत्थिमेणं दो साहस्सीओ पण्णत्ताओ, दक्खि एमा साहस्सो पता उत्तरे एगा साहसी पण्णत्ता जाव दामा चिट्ठन्ति त्ति ।
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एवं गोमाणसिआओ, णवरं - धूवघडिआओ त्ति ।
तासि णं समाणं मुहम्माणं तो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण
मणिपेडिया दो जोषणा आयाम-विषमेणं, जो बाहल्लेणं ।
तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि माणवए चेइयखम्भे मज्झमाणे उवर छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठा छक्कोसे वज्जित्ता जिणसकहाओ पण्णत्ताओ त्ति । माणगरस पुम्बेषं सीहाराणा सपरिवारा, पच्चरिथमेनं सयणिज्ज वण्णओ ।
सय णिज्जाणं उत्तर-पुरत्थिमे दिसिभाए खुड्डगमहदया मणिवेदिओ विणा महियमाणा ।
तेस अयरेण चोरफाला पहरणकोसा तस्य णं बहवे फलिहरयणपामुक्खा जाव- चिट्ठन्ति ।
सुहम्माणं उपि अट्टट्ठमंगलगा ।
तासि णं उत्तर-पुरत्थिमेणं सिद्धाययणा, एस चेव जिणघराण वि गमो त्ति । णवरं इमं णाणत्तं एतेसि णं बहुमन्सदेसमाए पत्तेयं पलेयं मणिपेठियाओ दो जो बाई आयाम विक्स जो बाहल्लेणं ।
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तासि उप्पि पत्तेयं पत्तेय देवच्छं दया पण्णत्ता । दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाई दो जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया जिणपडिमा वष्णओ-जाव-धूवक डुच्छगा ।
एवं अवसेसाण वि सभाणं- जाव उववायसभाए सयणिज्जं हरओ अ ।
अभिसेसभाए बहु अभिसेक्के मंडे चिट्ठइ । अलंकारिनसभाए बहू अलंकार
ि
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ववसाय सभासु पुत्थयरयणा ।
नंदा क्खरिणीओ |
लिपे से जोगाई आयाम विश्वंभे मोय बाले जाय-ति ।
गणितानुयोग
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उन सुधर्मा सभाओं में छह हजार मनोगुनिका पीठिका हैं। वे इस प्रकार पूर्व में दो हजार पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार - यावत्-वहाँ दाममातायें हैं ।
इसी प्रकार गोमानसिकाएं (शय्यारूप स्थान विशेष) भी है। विशेष यह है कि वहाँ पटिकाएं हैं।
उन सुधर्मा सभाओं के अन्दर अति सम एवं रमणीय भूमि - भाग है ।
वहाँ की मणिपीठिका दो योजन लम्बी-चौड़ी और एक योजन मोटी है ।
उन मणिपीठिकाओं पर माणवक चैत्यस्तंभ हैं, जो महेन्द्रध्वज के बराबर प्रमाण वाला है। ( उसके ऊपर छह कोस अवगाहन करने पर और नीचे छह कोस छोड़ कर जिन की अस्थियाँ हैं ।
माणवक (चैत्यस्तंभ ) के पूर्व में सपरिवार सिंहासन हैं। पश्चिम में शय्याओं का वर्णन करना चाहिए ।
शय्याओं के उत्तर-पूर्व कोण में छोटे महेन्द्रध्वज हैं । वे मणिपीठिका से रहित हैं और महेन्द्रध्वज के बराबर प्रमाण वाले हैं ।
उनके पश्चिम में चोफाल नामक शस्त्रागार है। उनमें परिघरत्न आदि - यावत् — शस्त्र रक्खे हैं ।
सुधर्मा सभाओं के ऊपर आठ-आठ मंगलद्रव्य हैं ।
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उनके उत्तर-पूर्व में सिद्धायतन हैं। जिनगृहों का भी यही गम है। विशेषता यह है कि इनके ठीक मध्यभाग में अलगअलग मणिपीटिकाएँ हैं, जो दो योजन लम्बी-चौड़ी और एक योजन मोटी हैं।
उनके ऊपर अलग-अलग देवच्छंदक हैं ।
वे दो योजन लम्बे-चौड़े कुछ अधिक दो योजन ऊंचे, सर्वरत्नमय हैं । यहाँ जिन प्रतिमाओं का वर्णन धूपदानी पर्यन्त कह लेना चाहिए।
इसी प्रकार शेष सभाओं का यावत् - उपपातसभा का वर्णन समझना चाहिए । हृदों का भी वर्णन कर लेना चाहिए ।
अभिषेक सभा में बहुत से अभिषेक के योग्य भाण्ड रक्खे हैं । अलंकारिक सभा में अलंकार योग्य बहुत से भाण्ड हैं । व्यवसायमाओं में पुस्तकरल हैं।
नन्दा पुष्करिणी हैं।
लिपीठ हैं जो दो योजन लम्बे-चौड़े एवं एक पोजन मोठे हैं । यावत् —