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________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना १. गणितानुयोग-एक परिचय ___मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' द्वारा संकलित यह संकलन इस ग्रन्थ का नाम गणितानुयोग युक्त लोक प्रज्ञप्ति सार्थक है। साथ ग्रन्थ है जिसमें श्वेताम्बर मान्य जैन आगमों में वर्णित भूगोल एवं ही मूल सूत्र का उसी पृष्ठ पर अद्ध भाग में और हिन्दी अनुवाद खगोल सम्बन्धी ऐसे समग्र सूत्रों का संकलन किया गया है का उसी पृष्ठ पर शेष अद्ध भाग में आमने-सामने दिये जाने से इस जिनमें गणित का स्वाभाविक रूप से उपयोग हुआ है । इस ग्रन्थ नवीन संस्करण का महत्व अपने आप में अत्यधिक बढ़ गया है, में उक्त संकलन का वर्गीकरण लोक संरचना के माध्यम से किया जो न केवल देशी वरन् विदेशी छात्रों के लिए अत्यन्त लाभकारी गया है जिसमें खगोल, ज्योतिष एवं भूगोल विषयक सामग्री वर्गी- सिद्ध होगा। कृत हो जाती है । लोक संरचना में विभिन्न प्रकार के लोकों का अब हम इस विशिष्ट रूप से संकलित सामग्री के गणितीय अलग-अलग विवरण चुना गया है जिसमें लोक (सामान्य), द्रव्य रूप को निखारने का निम्नलिखित रूप से प्रयास करेंगे । विवरण लोक, क्षेत्रलोक, अधोलोक, तिर्यक्लोक, (मध्य लोक), ऊर्ध्व लोक सूत्र की संख्यानुसार होगा। काल लोक, अलोक एवं लोकालोक विषय लिये गये हैं । गणितानुयोग का शब्दार्थ गणित सम्बन्धी पृच्छा अथवा गणित लोक सम्बन्धी गणितीय विवरण सम्बन्धी सूत्रों का विस्तार से अर्थ प्रतिपादन होता है । साहित्य सत्र १.१०२: का द्रव्यात्मक एवं भावात्मक स्वरूप होता है। __अनन्त शब्द दार्शनिक ही नहीं वरन् अनन्त चतुष्टय का वैदिक साहित्य के एक अंग उपनिषत् में जो उपदेश गौतम प्रतीक है। अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त का नाम लेकर सुनाया गया है। वह वर्द्धमान महावीर के प्रधान सुख के लिए इसका उपयोग सिद्ध भगवानों के लिए हुआ है । यहां शिष्य इन्द्रभूति गौतम का स्मरण दिलाता है जिन्हें श्वे. जैनागमों अनन्त ज्ञान की अविभागी प्रतिच्छेद राशि समस्त राशियों का में गौतम नाम से ही सम्बोधित करके सुनाये गये हैं। संकलन रूप होती है । यह पद अनन्त काल तक अचल होने के इसी शैली में अर्द्धमागधी के सूत्रों को उद्धृत कर एवं उसके कारण अनन्त समयों से युक्त भविष्य काल राशि के समयों ठीक सम्मुख हिन्दी अनुवाद देते हुए यह संकलन शोध छात्रों __ की संख्या का भी सूचक है । विशेष विवरण हेतु देखिये जै. सि. के लिए अत्यन्त उपयोगी बन पड़ा है। को. भाग १, पृ० ५४; इत्यादि; जै० ल०, भाग १, पृ० ४५. इत्यादि । देखिये रा० अ० को० भी। उपलब्ध अर्धमागधी जैनागम ११ श्रु तांगों, १२ उपांगों, १० प्रकोजकों, २ चलिका सूत्रों में निहित है । आगमों का टीका सूत्र २८, पृ० ११ साहित्य भी उपलब्ध है, किन्तु इस संकलन में केवल अंगोपागों के लोक प्रमाण पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर में असंख्य मूल सूत्रों का संकलन इस प्रकार किया गया है कि गणित विषयक कोटाकोटि योजन बतलाया गया है । यहाँ तीनों पारिभाषिक शब्द प्राचीनतम सामग्री का लोक विषयक निरूपण हो सके। इस प्रकार आये हैं । १ हन्त तेऽदम् प्रवक्ष्यामि, गुह्य ब्रह्म सनातनम् । यथा च मरणं प्राप्य, आत्मा भवति गौतम !॥ योनिमन्ये प्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः । स्थाणुमन्येऽनु संयन्ति यथाकर्म यथाश्रुतं । कठो. २,२,६-७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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