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तिर्यक् लोक
गणितानुयोग
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(५) उ० तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णामं दीवे दीवसमुद्दाणं (५) उ०—यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप उन द्वीप-समुद्रों के अभितरिए सव्वखुड्डाए।
अन्दर है, सबसे छोटा है. वट्ट तेल्लापूयसंठाणसंठिए,
तेल के पूये जैसे वृत्त (गोल) संस्थान से स्थित है। वट्ट रहचक्कवालसंठाणसंठिए,
रथ के पहिये जैसे वृत्त संस्थान से स्थित है। वट्ट पुक्खर कण्णियासंठाणसंठिए,
पुष्करकणिका जैसे वृत्त संस्थान से स्थित है। वट्ट पडिपुन्नचंदसंठाणसंठिए,
पूर्णचन्द्र जैसे वृत्त संस्थान से स्थित है। एक्कं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि इसका आयाम-विष्कम्भ एक लाख योजन का है। तीन जोयणसयसहस्साई, सोलस य सहस्साई “दोण्णि लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताबीस योजन, तीन कोश, अठावीस य सत्तावीसे जोयणसए, तिण्णि य कोसे, अट्ठावीसं धनुष, तेरह अंगुल और आधे अंगुल से कुछ अधिक की इसकी च धणुसयं, तेरस अंगुलाई, अद्धंगुलकं च किंचि परिधि कही गई है। विसेसाहियं परिवखेवेणं पण्णत्ते ।।
-जीवा०प० ३, उ० १, सु० १२३-१२४
१ आगमोदय समिति से प्रकाशित जीवाभिगम (मलयगिरि-टीक सहित) के सूत्र १२३ के मूलपाठ में द्वीप-समुद्र सम्बन्धी पाँच प्रश्न जिस क्रम से है, उसी क्रम से उनके उत्तर नहीं है ।
टीकाकार पाँच प्रश्नों और उत्तरों का क्रमशः विषय निर्देश इस प्रकार करते हैं(१) प्र०–'कहि णं भंते ! दीव-समुद्दा ?' इत्यादि 'क्क' कस्मिन् णमिति वाक्यालङ्कारे भदन्त ! परम कल्याणयोगिन् ! द्वीप
समुद्राः प्रज्ञप्ताः ? अनेन द्वीपसमुद्राणामवस्थानं पृष्टम् । (२) प्र०--'केवइया णं भंते ! दीव-समुद्दा ?' इति "कियन्तः' कियत्संख्याका णमिति वाक्यालंकारे भदन्त ! द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ताः ?
अनेन द्वीपसमुद्राणां संख्यानं पृष्टम् ।। (३) प्र०-'के महालिया णं भंते ! दीवसमुद्दा ?' इति किं महानालय-आश्रयो व्याप्यक्षेत्ररूपो येषां ते महालयाः किं प्रमाण
महालया णमिति प्राग्वद् द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ताः ? किं प्रमाणं द्वीपसमुद्राणा महत....भिति भावः, एतेन द्वीप समुद्रा
णामायामादि परिमाणं पृष्टम् ।। (४) प्र०-"किं संठिया णं भंते ! दीव-समुद्दा ?' इति किं संस्थित संस्थानं येषां कि संस्थिता, णमिति पूर्ववद्, भदन्त ! द्वीप-समुद्रा
प्रज्ञप्ताः ? अनेन संस्थानं पप्रच्छ ।। (५) प्र०-'किमागारभावपडोयारा णं भंते ! दीव-समुद्दा पण्णत्ता?' इति आकारभावः स्वरूपविशेषः, कस्य आकारभावस्य
प्रत्यवतारो येषां ते किमाकार भावप्रत्यवतारा:................णमिति पूर्ववद्, द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ताः ? किं स्वरूपं द्वीप
समद्राणामिति भावः, अनेन स्वरूप विशेष विषयः प्रश्नः कृतः । उत्तरों का विषयनिर्देश :-- (१) उ०-इह 'अस्सिं तिरियलोए' इत्यनेन स्थानमुक्तम् ! (२) उ०-'असंखेज्जा' इत्यनेन संख्यानम् । (३) उ.--'दुगुणादुगुण' मित्यादिना महत्त्वम् । (४) उ०-'संठाणतो' इत्यादिना संस्थानम् ।
पाँचवें उत्तर के सम्बन्ध में टीकाकार की सूचना :
सम्प्रत्याकार भाव प्रत्यवतारं विवक्षुरिदमाह(५) उ०—'तत्थाणं अयं जंबुट्टीवे णामं दीवे " परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।' चार प्रश्नों के उत्तर सूत्र १२३ में है और पाँचने प्रश्न
का उत्तर सूत्र १२४ में है। आगमोदयसमिति से प्रकाशित जीवाभिगम सूत्र १२३ का मूलपाठ :(१) प्र०--कहि गं भते ! दीवसमुहा? (२) प्र०-केवइया णं भंते दीवस मुद्दा? (३) प्र०-के महालया णं भंते ! दीवसमुहा?
(शेष पृ० १२४ पर)