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लोय-पण्णत्ति तिरियलोगो (मज्झलोगो)
लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक (मध्य लोक)
भगवओ महावीरस्स मिहिलाए समोसरणं- भगवान महावीर का मिथिला में समवसरण१. तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला णामं गयरी होत्या, १. उस काल और उस समय में मिथिला नामक नगरी थी, वह रिद्धस्थिमियसमिद्धा । वण्णओ।
ऋद्धि से तथा शान्ति से समृद्ध थी । यहाँ नगरी का वर्गक कहना
चाहिए। तोसे गं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए उस मिथिला नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिग्विभाग में माणिएत्थ णं माणिभद्दे चेइए होत्था । वण्णओ।
भद्र चैत्य था । यहाँ चैत्य का वर्णक कहना चाहिए। जियसत्तुराया, धारिणीदेवी"वण्णओ।
वहाँ जितशत्रु राजा था, (उनकी) धारिणीदेवी (रानी) थी।
यहाँ राजा और रानी का वर्णक कहना चाहिए। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, उस काल और उस समय में (भगवान महावीर) स्वामी धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया।
पधारे, (उनकी देशना सुनने के लिए नगरी से) परिषदा निकली। (भगवान महावीर ने) धर्म कहा । (देशना पूर्ण होने पर) परिषदा
वापस चली गई। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अंतेवासी इंदभई णामं अणगारे गोयम गोत्तेण सत्तुस्सेहे सम- ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार (जिनका) समचतुरस्र चउरंससंठाणे-जाव-तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदइ संस्थान था-यावत्-वे (श्रमण भगवान महावीर को) तीन बार णमंसइ बंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार करते हैं और बन्दन -जंबु० वक्ख० १, सु० १-२ नमस्कार करके वे इस प्रकार बोलेतिरियलोय-खेत्तलोयरस भेया
तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक के भेद२.५० तिरियलोय-खेत्तलोए णं भंते ! कतिविधे पण्णते ? २. प्र०-हे भगवन् ! तिर्यक्लोक का क्षेत्रलोक कितने प्रकार का
कहा गया है ? उ० गोयमा ! असंखेज्जतिविधे पण्णत्ते, तं जहा-जंबुद्दीव- उ०-हे गोतम ! असंख्येय प्रकार का कहा गया है, यथातिरियलोय खेत्तलोए-जाव-सयंभुरमणसमुद्द तिरियलोय- जम्बूद्वीप तियक्लोक का क्षेत्रलोक-यावत्-स्वयम्भरमणसमुद्र खेत्तलोए। -भग० स० ११, उ० १० सु० ५ तिर्यक्लोक का क्षेत्रलोक ।