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________________ सूत्र १८६-१९२ चत्तारि तं जहा(t) fr (४) सोयामणी । १२० ग्राहाओ : : W विज्जुकुमारि महत्तरियाओ (२) का भवणवासीणं वण्णाई १६१ : गाहाओ काला असुरकुमारा, जागा उबही य पंडुरा दो वि । वरकणगणिहसगोरा, होंति सुवण्णा दिसा थणिया ॥ उत्तत्तकणगवण्णा, विज्जू अग्गी य होंति दीवा य । सामा पियंगुवण्णा, बाजकुमारा मुपेया ॥ - पण्ण० पद० २, सु० १८७ । भवणवासीणं परिहाणवण्णाई -: २. ४. १६२ : गाहाओ : असुरेसु होंति रत्ता, सिलिंघ पुप्फपभा य नागदही । आसासगवसणधरा, होंति सुवण्णा दिसा थणिया ॥ णीला रागवसणा, विज्जू अग्गी य होंति दीवा य । संशाणुरागवसणा बाउकुमारा मुणेया ॥ - पण्ण० पद० २, सु० १८७ । (a) erger, - ठाणं ४, उ० १, सु० २५६ १. सी, २. सो सामाणिया अधोलोक भवणवणं सामाणियदेव आयरक्खदेवसंता - पतामो उ ३-१० अरवज्जा"। एए, चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ - पण्ण० पद० २, सु० १८७ । भवनवासी देवों के वर्ग गणितानुयोग विद्युत्कुमारियों में महत्तरिका - प्रधान चार कही गई हैं, यथा (१) चित्रा, (२) चित्र कनका, (३) शतेरा, (४) सौदामिनी । ६१ १९० गाथार्य असुरकुमारों का वर्ण काला है, नागकुमार और उदधिकुमारों का वर्ण पंडुर (श्वेत-पीत मिश्रित) है, सुवर्णकुमार, दिशाकुमार और स्तनितकुमारों का वर्ग कसोटी पर की हुई श्रेष्ठ स्वर्णरेखा के समान गौर वर्ण है । विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमारों का वर्ण तपे हुए स्वर्ण वर्ण जैसा है, वायुकुमारों का वर्णं प्रियंगु जैसा श्याम जानना चाहिए । भवनवासी देवों के परिधानों (वस्त्रों) का वर्ण१६१ : गाथार्थ— असुरकुमारों के वस्त्रों का वर्ण रक्त है, नागकुमार और उदधिकुमारों के वस्त्रों का वर्ण सिलि (वृक्ष) के पुष्पों की प्रभा जैसा है, सुवर्णकुमार, दिशाकुमार और स्तनितकुमारों के वस्त्रों का वर्ण आसासग ( वृक्ष के वर्ण) जैसा है, विद्युतकुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमारों के वस्त्रों का वर्ण नीला है, वायुकुमारों के वस्त्रों का वर्ण संध्या समय जैसा जानना चाहिए । - भवनपतियों के सामानिक देवों की और आत्मरक्षक देवों की संख्या १९२ : गाथार्थ चमरेन्द्र के चौसठ हजार सामानिक देव हैं और चौसठ हजार के चौगुणे (दो लाख छप्पन हजार) आत्मरक्षक देव हैं । वैरोचनेन्द्र बलि के साठ हजार सामानिक देव हैं और साठहजार के चौगुणे (दो लाख चालीस हजार ) आत्मरक्षक देव हैं। १. इस सूत्र में चित्रा और चित्रकनका- ये दो नाम ऊपर ५०८ सूत्र में दी गई संक्षिप्त वाचना की सूचना से भिन्न है । सूचना महत्तरिकाओं के चार सूत्र केवल तुलनात्मक अध्ययन के लिए यहाँ दिये हैं। सम० ६४, सु० ३ । ३. सम० ६०, सु० ४ ०६, ०५० असुरेन्द्रों को छोड़कर शेष आठ इन्द्रों (प्रत्येक ) के छह-छह हजार सामानिक देव हैं और प्रत्येक के आत्मरक्षक देव छह हजार के चौगुणे ( चौबीस हजार ) हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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