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लोक-प्रज्ञप्ति
लोक
सूत्र २१-२२
णामलोगे
नामलोक २१ : प०-[से कि तं णामलोगे?]
२१ : प्रश्न-नामलोक (का स्वरूप) क्या है ? उ०-णामलोगे] जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा उतर-नामलोक (का स्वरूप इस प्रकार है-जिस जीव तदुभयस्स वा तदुभयाण वा लोगत्ति नाम कोरए का या अजीव का, जिन जीवों का या अजीवों का तथा दोनों से तं णामलोगे।]
(जीव-अजीव) का या दोनों (जीवों-अजीवों) का "लोक" यह
नाम किया जाता है - यह नामलोक (का स्वरूप) है। -अणु० सु० १०
ठवणालोगे २२ : [प०-से किं तं ठवणालोगे ?] उ०-ठवणालोगे जण्णं
१. कटकम्मे वा, २. चित्तकम्मे वा, ३. पोत्थकम्मे वा, ४. लेप्पकम्मे वा, ५. गंथिमे वा, ६. वेढिमे वा, ७. पूरिमे वा, ८. संघाइमे वा,
स्थापनालोक २२ : प्रश्न-स्थापनालोक (का स्वरूप) क्या है ?
उत्तर-स्थापनालोक (का स्वरूप इस प्रकार) है१. काष्टकर्म-काष्ट पर कोर कर बनाई हुई आकृति । २. चित्रकर्म-कागज आदि पर बनाया हुआ चित्र । ३. पुस्तकर्म-वस्त्र पर बनाई हुई आकृति। ४. लेप्यकर्म-कुछ पदार्थों के लेप से निर्मित आकृति । ५. ग्रंथिम-सूत आदि को गूंथकर बनाई गई आकृति । ६. वेढिम-वेष्टन (लपेट कर) बनाई गई आकृति । ७. पूरिम-सांचे में पूर (ढाल) कर बनाई गई आकृति । ८. संघातिम-कुछ पदार्थों के खण्डों को जोड़कर बनाई
गई आकृति । ६. अक्ष-द्वीन्द्रिय जाति के एक प्रकार के प्राणियों की
अस्थियों से बनाई गई आकृति । १०. वराटक-कौडियों से बनाई गई आकृति । (१) १०. एक आकृति। (२) १०. अनेक आकृतियाँ । (३) १०. सद्भाव (वास्तविक) स्थापना । (४) १०. असद्भाव (कल्पित) स्थापना। (इन दस में)
'लोक' की स्थापना स्थापित की जाती है। यह स्थापनालोक है।
६. अक्खे वा,
१०. वराडए वा.... (१) १०, एगो वा, (२) १०. अणेगा वा, (३) १०. सब्भावठवणाए वा,
(४) १०. असंब्भावठवणाए वा। [लोगत्ति ठवणा ठविज्जति । सेत्तं ठवणालोगे।]
- अणु० सु० ११
१. ऊपर कोष्ठकों में मूल पाठ का जितना अंश है वह संकलित है और शेष मूलपाठ महावीर वि० से प्रकाशित अनुयोग द्वार
सूत्रांक १०, ११ के अनुसार है। स्व० पूज्य अमोलखऋषिजी महाराज अनुवादित अनुयोगद्वार की प्रति में स्थापना के चालीस भेद हैं, वे इस प्रकार हैंप्रथम दस भेद-काष्टकर्मादि दस पर अंकित की गई एक-एक आकृति । द्वितीय दस भेद-काष्टकर्मादि दस पर अंकित की गई अनेक आकृतियाँ । तृतीय दस भेद-काष्टकर्मादि दस पर अंकित सद्भाव स्थापना। चतुर्थ दस भेद-काष्टकर्मादि दस पर अंकित असद्भाव स्थापना ।