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________________ सूत्र १५-२० लोक गणितानुयोग १५ : गाहा–लोयं विजाणं तिह केवलेणं, पुण्णेण णाणेण समाहिजुत्ता । धम्म सम्मत्तं च कहति जेउ, तारंति अप्पाण परं च तिण्णा ॥ -सूय० सु० २, अ०६, उ०२, गा० ५० । १५ : गाथार्थ-जो समाधियुक्त (पुरुष) पूर्ण केवलज्ञान द्वारा लोक को जानते हैं और सम्यक्त्व धर्म का कथन करते हैं वे उत्तीर्ण पुरुष स्व-पर के तारक हैं। १६ : गाहा-लोयं अयाणित्तिह केवलेणं, कहंति जे धम्ममजाणमाणा। णासंति अप्पाण परं च णट्टा, संसारघोरम्मि अणोरपारे । -सूय० सु० २, अ० ६, उ० २, गा० ४६ । १६ : गाथार्थ-जो अज्ञानी केवलज्ञान द्वारा लोक को जाने बिना धर्म का कथन करते हैं, वे अपना और दूसरे का भी नाश करते हैं तथा अपार घोर संसार में परिभ्रमण करते हैं। १७:गाहानत्थि लोए अलोए वा, नेवं सन्नं निवेसए। १७ : गाथार्थ-लोक और अलोक नहीं है-ऐसी संज्ञा (धारणा) अत्यि लोए अलोए वा, एवं सन्नं निवेसए॥ नहीं रखना चाहिए। लोक और अलोक है-ऐसी संज्ञा रखना चाहिए। -सूय० सु० २, अ०५, गा० १२. लोग-भेया १८ : एगे लोए। -ठाणं० अ० १, सु० ५। सम० स० १, सु०७। लोक के भेद १८ : लोक एक है। १९ : तिविहे लोए पण्णत्ते, तं जहा १. णामलोगे, २. ठवणालोगे, ३. दब्वलोगे। -ठाणं० अ० ३, उ०२, सु० १५३ । १६ : लोक तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा (१) नामलोक, (२) स्थापनालोक, (३) द्रव्यलोक। २०: प०-कइविहे णं भंते ! लोए पन्नत्ते ? उ०-गोयमा ! चउम्विहे लोए पन्नत्तं, तं जहा १. दव्वलोए, २. खेत्तलोए, ३. काललोए, ४. भावलोए। -भग० स० ११, उ० १०, सु० २ । २० : प्रश्न-भगवन् ! लोक कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर-गौतम ! लोक चार प्रकार का कहा गया है, यथा(१) द्रव्यलोक, (२) क्षेत्रलोक, (३) काललोक, (४) भावलोक ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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