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अहम् है
लोय-पण्णत्ति लोक-प्रज्ञप्ति
अरिहंत-सिद्धथुई
अरिहंत-सिद्ध-स्तुति
१. णमोऽथु णं
अरिहंताणं -भगवंताणं
आइगराणं .तित्थयराणं . सयंसंबुद्धाणं
पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुण्डरीआणं
पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं
१: नमस्कार हो
अरिहंतों (कर्म-शत्रुओं के हंताओं) को, भगवन्तों (समग्र ऐश्वर्ययुक्तों) को, आदिकरों (श्रुतधर्म की आदि करनेवालों) को, तीर्थंकरों (चतुर्विध संघ की स्थापना करनेवालों) को,
स्वयंसंबुद्धों (गुरु-उपदेश के बिना स्वतः बोध प्राप्त करने वालों) को,
पुरुषों में उत्तमों (अतिशययुक्त प्रधान पुरुषों) को, पुरुषों में सिंहों (सिंह समान शौर्यवालों) को,
पुरुषों में वरपुण्डरीकों (श्रेष्ठ श्वेत कमल समान सर्व अशुभ मलिनता रहितों) को,
पुरुषों में वर-गंधहस्तियों (श्रेष्ठ गंधहस्ती समान पुरुषों) को, लोक में उत्तमों (प्रधानों) को, लोक के नाथों को, लोक का हित करने वालों को, लोक के प्रदीपकों (सर्व वस्तु प्रकाशकों) को, ' लोक के प्रद्योतकरों (उद्योतकरों) को,
अभयदान देनेवालों (प्राणिमात्र को भय न देने की प्रतिज्ञा वालों) को,
चक्षु (श्रुतज्ञान) देनेवालों को, मार्ग देनेवालों (सम्यग्ज्ञानादि मोक्षपथदर्शकों) को, शरण (निरुपद्रवस्थान अथवा निर्वाण) देनेवालों को,
7. चक्खुबयाणं
मग्गबयाणं सरणदयाणं