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________________ गणितानुयोग : भूमिका | ६३ (१८६०००) मील, तथा प्रति मिनिट एक करोड़ ग्यारह लाख १,५०,००,००० १६ ५६,००,००,००० साठ हजार (१११६००००) मील मापी गई है । इस प्रमाण से १८ २६,६०,००,००० २० १,००,००,००,००० - सूर्य का प्रकाश हमारी पृथ्वी तक आने में साढ़े आठ (1) (एक अरब) मिनिट लगते हैं। तारे हमसे इतनी दूर हैं कि उनका प्रकाश हमारे जेम्स जीन्स सदश वैज्ञानिक ज्योतिषी का मत है कि तारों की समाप वा म आ पाता है और जितन वषा म वह आता ह उतन संख्या हमारी पृथ्वी के समस्त समुद्र-तटों की रेत के कणों के बराही प्रकाश-वर्ष की दूरी पर वह तारा कहा जाता है। सेञ्चुरी बर हो तो आश्चर्य नहीं है । ये असंख्य तारे एक दूसरे से कितने नामक अति निकटवर्ती तारा हमसे साढ़े चार प्रकाश-वर्ष की दूरी दूर-दूर हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सूर्य । पर है क्योंकि उसके प्रकाश को हमारे पास तक आने में साढ़े चार से अति निकटवर्ती तारा साढे चार प्रकाश-वर्ष अर्थात् अरबोंप्रकाश-वर्ष लगते हैं । इस प्रकार दस, बीस, पचास एवं सैकड़ों खरबों मील की दूरी पर है। ये सब तारे बड़े वेग से गतिशील प्रकाश-वर्षों की दूरी के ही नहीं, किन्तु ऐसे-ऐसे तारों का ज्ञान हैं और उनका प्रवाह दो भिन्न दिशाओं में पाया जाता है । हो चुका है जिनकी दूरी दस लाख प्रकाश वर्ष की मापी गई है तथा जो परिमाण में इस पृथ्वी से तो क्या, हमारे सूर्य से भी लाखों ५-नीहारिका गुने बड़े हैं । बिखरी वाष्प की शक्ल में जो अनेक तारों का समूह पाया ताराओं की संख्या का पार नहीं है। हमें अपनी दृष्टि से तो जाता है, उन्हें नीहारिका कहते हैं । बिना दूरबीन के हम अपनी अधिक से अधिक छठे प्रमाण तक के लगभग छह-सात हजार तारे आँखों से एकाध ही नीहारिका देख सकते हैं और वह भी देखने ही दिखाई देते हैं । किन्तु दूर-दर्शक यन्त्रों को जितनी शक्ति बढ़ती में तारों जैसी ही मालूम होती है। दूरबीन से देखने पर उनमें जाती है, उतने ही अधिकाधिक तारे दिखाई देते हैं। अभी तक कुछ गोल दिखाई देती हैं और कुछ की आकृति शंख के चक्कर -बीसवें प्रमाण तक के तारों को देखने योग्य यन्त्र बन चके हैं की भांति है । गोल नीहारिकाएँ हमारे स्थानीय विश्व या आकाश.जिनके द्वारा दो अरब से भी अधिक तारे देखे जा चके हैं। जिनकी गंगा के तारागुच्छ है । चक्करदार नीहारिकाएँ महान विश्व से • तालिका आगे दी जाती है। छोटी, किन्तु करोड़ों तारा गुच्छकों से मिलकर बने छोटे विश्व हैं । यद्यपि विशेष विवरण के साथ जाँच-पड़ताल की गई नीहा४-वैज्ञानिकों के अनुसार तारों की संख्या रिकाएँ सौ से भी कम हैं, किन्तु दूरबीन से बीस लाख के करीब आज के वैज्ञानिकों ने प्रकाश की हीनाधिकता के अनुसार चक्करदार नीहारिकाओं के अस्तित्व का पता चला है । आकाश• तारों को कई वर्गों में बाँटा है । पहिले, दूसरे और तीसरे वर्ग के गंगा भी इसी श्रेणी का एक द्वीप-विश्व है । हमारी पृथ्वी न तारे अधिक चमकीले हैं, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम है । आठवें वृहस्पति की भाँति विशाल और न शुक्र की भाँति छोटा ग्रह है । वर्ग तक के तारों को आँखों से देखा और गिना जा सकता है, सूर्य भी मध्यम आकार का एक ग्रह है । किन्तु आकाश-गंगा : किन्तु इससे आगे के वर्गों के तारों को दूरबीन की सहायता से ही अपनी श्रेणी के द्वीप-विश्वों से बहुत बड़ी है । आकाश-गंगा भी - देखा और गिना गया है। एक मध्यम आकार की नीहारिका है, जिसकी मात्रा एक अरब सूर्यों से भी ज्यादा है। सूर्य हमारी पृथ्वी से तीन लाख तेरह वैज्ञानिकों के द्वारा २० वर्गों में विभक्त तारों की संख्या इस हजार गुना बड़ा है। प्रकार है:वर्ग संख्या वर्ग संख्या ६-आकाश गंगा १६४ ११७००० यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आकाश गंगा क्या वस्तु है ? रात ३२४००० को आकाश में एक सफेद बालुका पथ या गंगा जैसी सफेद चौड़ी २०० ११ ८७००० धारा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर लम्बे आकार में ५३० २२,७०,००० दिखाई देती है, इसे ही आकाश-गंगा कहते हैं । आकाश-गंगा स्वयं १६२० १३ ५७,००,००० तारों का एक समूह है । इसमें सूर्य जैसे दो खरब के करीब तारे -४८५० १४ १,३८,००,००० हैं । इसकी आकृति अण्डाकार जेबी घड़ी या दो जुड़े गोल तवों १४३०० १५ ३,२०,००,००० की भाँति बीच में मोटी और किनारों पर पतली है । इसका व्यास ७,१०,००,००० ३ लाख प्रकाश-वर्ष और मोटाई १० हजार प्रकाश-वर्ष है। x .m ur
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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