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________________ प्रकाशकीय द्वितीय संस्करण की पृष्ठभूमि : जिज्ञासु जगत् की जिज्ञासाओं का वैविध्य स्वयंसिद्ध है । इस जगत् में कुछ ऐसे भी जिज्ञासु हैं जिनका सर्वाधिक प्रिय विषय गणित रहा है । ऐसे जिज्ञासुओं की जिज्ञासाएँ ही गणितानुयोग के इस द्वितीय संस्करण के प्रकाशन की पृष्ठभूमि रही हैं । आगम अनुयोग प्रकाशन परिषद साण्डेराव की ओर से गणितानुयोग का प्रथम संस्करण जिस समय प्रकाशित हुआ था, उस समय द्वितीय संस्करण की न कल्पना थी और न सम्भावना ही थी। अपितु यह आशंका थी कि गणितानुयोग की इतनी प्रतियों का कहाँ कैसे उपयोग होगा ? क्योंकि गणित सर्वसाधारण की रुचि का विषय कभी नहीं रहा । सर्वप्रथम गणितानुयोग की प्रतियां अधिम ग्राहकों को भेजी गईं । उनमें से कुछ सज्जनों ने अपनी प्रतियाँ पुस्तकालयों में दे दीं और कुछ ने सन्तों को समर्पित कर दीं। कुछ सुद्धा युवकों ने अपनी-अपनी ओर से विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में गणितानुयोग की प्रतियाँ भेंट स्वरूप भेजीं । श्रमण संघीय महासतीजी श्री मुक्तिप्रभाजी की अन्तेवासिनी श्रमणियों का प्रतिलिपिलेखन आदि कार्यों में अत्यधिक योगदान भी प्रशंसनीय रहा । गणित सम्बन्धी प्राचीन चित्रों की प्रतिकृति प्राप्त कराने में आचार्य श्री विजययशोदेव सूरि जी म० का सहकार प्राप्त हुआ, हम उनके प्रति हृदय से आभारी हैं । प्रस्तुत संस्करण के संकलन, सम्पादन तथा प्रकाशन आदि के ज्ञान में जिन-जिन मुनिवरों, महासतियों, विद्वानों एवं श्रीमानों का उदार योगदान रहा, यह ट्रस्ट उन सब महान् आत्माओं का एवं सहयोगियों का सदैव आभारी रहेगा। उन पुस्तकालयों से कतिपय भूगोल-गोल के प्राध्यापकों ने योग का अवलोकन किया और उनकी प्रेरणा से गणित सम्बन्धित शोध निबन्ध लेखकों ने अपने-अपने निबन्धों में उसका उपयोग किया । हम प्रथम संस्करण के सम्पादन सहयोगी स्व० पं० हीरा लाल जी शास्त्री ब्यावर, पं० श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल तथा डा. मोहनलाल जी मेहता के प्रति भी आभार-स्मरण करते हैं । सम्पादन सहयोग : श्रीयुत श्रीचन्द सुराणाजी व्यवसायी भी हैं और विद्वान् भी जिन-जिन जिज्ञासुओं ने गणितानुयोग की उपयोगिता समझी है । शब्दकोश आदि परिशिष्टों के सम्पादन का योगदान आपका उन सबने पुस्तकें मंगाई, पड़ीं और सुरक्षित रखीं। श्लाध्य है । ग्रन्थ का गौरव शुद्ध सुन्दर मुद्रण से आपने ही बढ़ाया है। इसके लिए ट्रस्ट आपका चिरकृतज्ञ रहेगा । कर्मठ कार्यकर्ता : प्रथम संस्करण के प्रचार-प्रसार में पूज्य अभयसागरजी महाराज का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस प्रकार प्रथम संस्करण की प्रतियां शनैः शनैः दुर्लभ होती गईं। आत्मिक योगदान : प्रथम और द्वितीय संस्करण के संशोधन, सम्पादन आदि सभी कार्य श्री विनयमुनिजी वगीश' के आत्मिक योगदान से ही मुनि श्री सम्पन्न कर सके हैं । मुनि श्री का अनन्य सेवाभाव तथा प्रत्येक कार्य विवेकपूर्वक सम्पन्न करने की लगन सदा अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है । प्रमुख प्रेरक : जैन दर्शन के मूर्धन्य विद्वान् श्री दलसुखभाई माया ने द्वितीय संस्करण के लिए हमें प्रेरणा दी और समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहे जिससे यह ट्रस्ट इस ग्रन्थराज को जिज्ञासु के सामने इस रूप में प्रस्तुत कर सका है। हम श्री दलजगत् सुखभाई के प्रति हार्दिक कतज्ञ हैं । श्री हिम्मतभाई तन से वृद्ध और मन से युवा हैं। आपकी श्रुत सेवा एवं व्यवस्था कौल अनुकरणीय है। शासनदेव उन्हें आरोग्य प्रदान करें । विनीत बलदेव भाई डोसाभाई पटेल अध्यक्ष आगम अनुयोग ट्रस्ट, अहमदाबाद 1
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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