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________________ ७२ | गणितानुयोग : प्रस्तावना ६. गणितानुयोग-आधुनिक सन्दर्भ में समर्पित किया है । तत्सम्बन्धी गणितीय प्रारूपों के अध्ययन और गणितानुयोग के विषय से उसकी तुलना करने हेतु हम संदर्भ प्रस्तुत प्रस्तावना के प्रथम शीर्षक में गणितानुयोग–एक ग्रन्थावलि में यथोचित सामग्री दे रहे हैं। परिचय दिया गया है जिसे आधुनिक सन्दर्भ में रखा जा सकता है। . साथ ही गणितानुयोग का एक और आधुनिक संदर्भ है। मुख्यतः विषय गणित, ज्योतिष एवं लोक संरचना संबंधी है जिसकी वह है विज्ञान इतिहास संबन्धी संरचना का। प्रथम अध्याय में तुलना आधुनिक विज्ञान से की जा सकती है। वास्तव में किन्हीं ज्ञान से का जा सकता है। वास्तव में किन्ही जो सूत्रों में पाईगये प्रकरण हैं उन्हें विज्ञान के इतिहास शोध की घटनाओं को सिद्धान्त रूप से समझाने या फलित रूप में विषयक रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है। यह विषय अपने परिणाम निकालने हेतु प्रतिरूप (मॉडल) या गणितीय प्रतिरूप आप में अत्यन्त गम्भीर है क्योंकि उद्गम सम्बन्धी समस्याएँ, (मेथामेटिकल मॉडल) स्थापित किये जाते हैं। परीक्षणों द्वारा विश्व विज्ञान इतिहास के संदर्भ में अनेक प्रकरणों में उलझी हुई ही प्रतिरूपों की सक्षमता शुद्धता आदि परीक्षित होती है। हैं । उदाहरणार्थ किस देश में किस काल में वहाँ की सभ्यता को स्पष्ट है कि गणित ज्योतिष का जैन सिद्धान्त जो गणितानु- किस प्रकार के गणित-विज्ञान की आवश्यकता हुई और उन्होंने योग में संग्रहीत है, जैन पंचांग के रूप को प्रस्तुत करता है। अपनी आवश्यकताओं और जटिल समस्याओं की प्रस्तुति को इसमें समय-समय पर शोधन कार्य होते रहे, क्योंकि औसतन, किस रूप में हल किया तथा विदेशों को अंततः उनका क्या लाभ माध्यमान पर आधारित यह पंचांग था जिसे समयानुसार ध्रुव मिला। राशि आदि राशियों के समीकरणों द्वारा पूरित किया जाता रहा तीर्थकर बर्द्धमान महावीर का युग क्रान्तिकारी युग था जब' होगा। यह आवश्यकता पर निर्भर करता है । अतएव अभी भी हिंसा को अहिंसा के सामने पैर टेकना पड़े थे । स्पष्ट है कि उस इस ओर अनेक जैन ज्योतिष ग्रन्थ जो उपलब्ध हैं तथा अनुपलब्ध बुद्धिवादी युग में वर्द्धमान महावीर के तीर्थ में लोक संरचना हैं उनके अनुवाद गणितीय टिप्पण सहित शोध हेतु तैयार करना के आधार पर कर्म सिद्धान्त के सूक्ष्मतम गणित द्वारा निर्मोह को आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि आधुनिक ज्योतिष का मॉडल कापरनिकस के सिद्धान्त के आधार पर है। फिर भी आइंस्टाइन प्रस्तुत करना पड़ा होगा । अहिंसा के मृदु स्पर्श में यह शुद्ध हीरे जैसी कठोरता कैसे पनपी होगी, आश्चर्य लगता है। किन्तु का सापेक्षता सिद्धान्त उसमें सूक्ष्मतम तत्व दे सका है । न्यूटन से आत्मा को अनुभूति करना पड़ी होगी कि कर्मों का बँटवारा नहीं अब सापेक्षता सिद्धान्त अत्यधिक सूक्ष्म परिणामों को होता है । यह प्रत्यनुभूति जैन गणित की पराकाष्ठा पर दृष्टिगत निकालता है। होती है । आज का वैज्ञानिक युग अति बुद्धिवादी है। इसमें यही हाल जन लोक संरचना का है। एक प्रतिरूप प्रस्तुत गणितानुयोग जैसे ग्रन्थों पर आधारित कर्मग्रन्थों का परीक्षण किया गया है, जिसमें गणितीय वस्तुओं को भर दिया गया है, विधि से गणक-मशीनों द्वारा दिग्दर्शन कराना अब अपरिहार्य हो अर्थात् विभिन्न प्रकार की राशियों से लोक की संरचना को चित्रित किया गया है। जीवराशियों से लेकर अनेकानेक प्रकार गया है । इसके लिये तीन प्रकार की गणक मशीनें आवश्यक हैं। जो क्रमशः संस्कृत प्राकृत जैन ग्रन्थों के अनुवाद, उनमें निहित की राशियों का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव प्रमाण देते हुए लोक की गणित ज्योतिष और निहित कर्म सिद्धान्त को वास्तविक रूप में विविधताओं पर विहंगम दृष्टि डाली गयी है। दिग्दर्शित कर सके। आशा है विश्वविद्यालयों में अथवा जैन प्रस्तुत प्रतिरूपों की गिनती आज के युग में दिनों दिन संस्थाओं में गणित पर आधारित जैन अध्ययन प्रारम्भ किये बढ़ती जा रही है। उनके निष्कर्षों का परीक्षण किया जाता जायेंगे, ताकि शोध की वास्तविक भावना को संबल प्राप्त हो रहा है । किन्तु अभी भी नीहारिकाओं का अखिल लोक से सके । शोध के विषय को चुनने हेतु गणितानुयोग जैसे सर्वेक्षण बाहर की ओर तीवातितीव्र वेग से निष्कासन प्रति क्षण होते ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होंगे। -लक्ष्मी चन्द्र जैन रहने का जो सप्तरंगी विश्लेषण हो सका है, उसका संतोषजनक प्रतिरूप (मॉडेल) प्राप्त नहीं हो सका है । यदि ब्रह्माण्ड प्रतिपल, Prof. L. C. Jain इस कारण विरलन को प्राप्त हो रहा है तो उसका घनत्व प्रायः _Hon. Director, DJICR, Hastinapur; सर्वत्र औसतन एक सा क्यों है ? क्या कोई शून्य में उत्पत्ति होती Addl. Hon. Director, A, Vidyasagara Research Institute-Jabalpur;रहती है ? ऐसे अनेक प्रकार से विश्व की संरचना विषयक INSA Research Associate, Physics Deptt, Rani सिद्धान्त प्रतिपादित हुए हैं । आइंस्टाइन, बोंडी, हायल, जीन्स, Durgavati University, Jabalpur; L.M.,Einstein Foundation international,Nagpur; चन्द्रशेखर प्रभृति विद्वानों ने आजीवन इस अध्ययन की ओर M.G.B.,D.C.,Ghuvara,L.MJ.R.S.:L.M.,A.B.V.R:
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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