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________________ ; 1 षडङ्गुलकलितत्रिहस्ताधिकसप्तकेन २८२|४१५ प्रथम नरक के प्रथम प्रस्तारं नारकियोंके शरीरकी ऊँचाई सात धनुष तीन हाथ छह अंगुल है । नीचे नीचे नरक में दूनी-नी होती हुई यह ऊँचाई सातवें नरक में पाँच सौ धनुष हो जाती है। एक अनुप चार हाथका होता है । प्रस्तारवार वृद्धिका अध्ययन करने के लिए राजदार्तिक तृतीयाध्याय, हरिवंश पुराण और त्रिलोकप्रज्ञप्ति देखें । सम्यग्दर्शन ५६।१०३ जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात प्रयोजनभूत तत्त्वोंकर श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । तत्वोंका विशिष्ट अध्ययन करने के लिए दशाध्याय तस्वार्थ सूत्र | अथवा सच्चें देव सच्चे शास्त्र देखें 1 প্স अकाण्ड-असमय १/१३ अकाण्डपलित-असमय में प्रकट बालोंकी सफेदी २९४/४३४ अकुतोभया-सत्र ओरसे निर्भय ७७।१३१ अग्रजन्मन् ब्राह्मणं १२५/१९४ ३७७७ अङ्गुलीयक- अंगूठो अङ्गविवर्तन - करवट १२२.१९० अचण्डभानत्रीय-सूर्य की किरणोंसे भिन्न ६०.१०९ अरमा - बिजली १८०१२७३ अञ्जन शिखरिदेशीय-अंजनगिरिके समान ५३/९९ अतिवेलम् - बहुत समय तक १२२।१९१ परिशिष्टानि और सच्चे गुरुका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । सच्चे देव आदिका स्वरूप जानने के लिए रत्नकरण्डश्रावकाचार देखें । अतिपेलव- अत्यन्त सुन्दर १४८।२२३ अतिसंधान - अधिक ठगाई ६०।१११ अथवा परपदार्थोंसे भिन्न आत्माको दृढ़ प्रतीति होना सम्यग्दर्शन है। इसके विशिष्ट अध्ययन के लिए समयसार देखें | सम्यग्ज्ञान ५६।१८३ संशय, विपर्यय और अनध्यवसायसे रहित जीवादि पदार्थोंका जानना सम्यग्ज्ञान है । सभ्यकुचारित्र ५६।१०३ संसार के कारणभूत क्रोधादि कषाय तथा हिंसादि पाँच पापोंका त्याग करना सम्यक् चारित्र है ।। ६. कतिपय विशिष्ट शब्दकोष अधरबन्धु-अधरोष्ठ के समान ३०१८ अधरता - नीचता, नीचेका ओठ ४.२६ १।१३ १९ अध्वन्य-पथिक मध्युषित-अि अनङ्गार्तदुस्तर - कामरूपी भँवर से दुस्तर अनमिनन्दित-अस्वीकृत ५९/१७८ २९।६४ ३९/७९ अनवद्य:- निर्दोष २२३/३३१ अतिकमणिदर्पण - समीपस्थ मणिमय दर्पण अन्तर्वलो गर्भिणी २०१५४ अन्धः संमार- भोजन सामग्रीका ५३११०० समूह अमादरवहन - उपेक्षा पूर्वक बांधना ४४० ३।२४ ५८।१०७ अनास्था अनादर अनास्थेया- अनादरणीय .१६५।२५१ अनिमेषाध्यक्ष- देवोंका स्वामी २७५/४०८ अनिमेषवृन्दारक- इन्द्र २३२ ३४२ अनुप्रेक्षा- विचार ७८११३३ अनुयात्रा - अनुगमन – पीछे चलना १।१४ अनूप - समीपवर्ती प्रदेश १।१३ अनुसारथि - सूर्य अनेकप- हाथी १३.४३ १३१/२०३ ३८।७७ अपगतासु-मृत अपचितिविधिज्ञ - पूजाकी विधि जाननेवाला १६९।२५८ अपनीतनिमेष मेष- टिमकाररहित १११।१७८ अपर्यवसायिन् - समाप्त नहीं होनेवाला अनन्त - अपसर्प-गुप्तचर २६६१ ९७११५९ अपाङ्गविक्षेप-कटाक्ष संचार अपूप-माल पुवा २२१।३२८ ५४/१००
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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