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________________ ३९४ गचिन्तामणिः पाश्लिष्टगात्रामपि पवित्राम, अक्रमक्षीणामिव कौमुदीम्, अभुजङ्गसङ्गमामिव चन्दनलताम, . अजडाकरप्रभवामिव पालक्ष्मी लक्ष्मणां पर्यणयत । ६२६३. इति श्रीमद्वादीभसिंहसूरिविरचितं गधचिन्तामणी लक्ष्मणाकम्मो नाम दशमो तम्मः । ५ परिहारपक्षेऽलकैश्चूर्णकुन्तलैरुदासते शोभते इत्येवंशीला तथाभूतामपि नयुतिस्तन्नाममाता संभवो निदान यस्यास्ताम्, मधुपैमद्यपाथिभिराश्लिष्टमालिङ्गितं गानं शरीरं यस्यास्तथाभूतामपि पवित्रां प्रतामिति विरोध स्पष्टः । परिहारपक्षे मधुपैः भ्रमरैराश्लिष्टगानामपि पविना पूताम्, विरोधाभास: क्रमेण क्षीणा न भवतीस्य. क्रमक्षीणा तथाभूतां कौमुदीमिव ज्योत्स्नामिव न विद्यते भुजङ्गस्य सर्पश्य सङ्गमो यस्यास्तथाभूतां चन्दन लतामिव मलयजवलीमित्र, न विद्यते जडाको जलाकरः प्रभवः कारणं यस्यास्तथाभूतां पालक्ष्मी १० कमल कमलाम् । पक्षे अजहः प्रबुद्धः, आकरः श्रेष्ठपुरुषः प्रभवो यस्यास्ताम् 'उत्पत्तिस्थाननिवहभ्रष्टेपु ख्यात भाकरः' इति विश्वलोचनः । ६२६३. इति श्रीमद्वादीमसिंहसूरिबिरनित गद्यचिन्तामणी लक्ष्मणालम्भी नाम दशमो लम्भः । गात्रा-मद्यपायी लोगोंसे आलिंगित शरीरा होकर भी पवित्र थी। पक्षमें भ्रमरोंसे आलिंगित १५ शरीरा होकर भी पवित्र थी। वह उस चाँदनीके समान थी कि जो अक्रमीणा-क्रम-कमसे मीण नहीं होती। पक्षमें कुलमर्यादासे रहित नहीं होती । अथवा उस चन्दन लताके समान थी कि जो अभुजंगसंगमा--साँपोंके संगमसे रहित थी। पक्ष में विटोंके संसर्गसे रहित थी। अथवा उस पालक्ष्मीके समान थी कि जो अजडाकर प्रभवा-जल के समूहसे उत्पन्न नहीं हुई थी । पक्ष में अजड-प्रबुद्ध और आकर-श्रेष्ट पुरुषसे उत्पन्न थी । ६२६३. इस प्रकार श्रीमयादीमसिंहसूरि द्वारा विरचित गद्यचिन्तामणिमें लक्ष्मणा लम्म नामका (लक्ष्मणाकी प्राप्तिका वर्णन करनेवाला) दसवाँ लम्म पूर्ण हुआ ॥१०॥
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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