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________________ ३६८ गवचिन्तामणिः [ २४२ युद्ध-: परम्पराकुलकूलंकषा कर्षणरयाकृष्टावशिष्टाक्षौहिणीका क्षतजधुनी क्षणादिव प्रावहत् । २४९. तदेवं मारितपादाते दारितहास्तिके नश्यदाश्वीये विपरिवतितरथकड्ये सारथिरहितरथिनि रथारोहक्षुण्णक्षत्तरि स्तम्बेरममरणसविषादनिषादिनि हस्त्यारोहविरहितहस्तिनि तुरङ्गमविगमसीदत्सादिनि अश्वारोहविरजिताश्वे च सति सैन्ये, रियामामिव दीर्घनिद्रोपद्रुत५ बहुलां तमोगुणप्रभवां च, बौद्धपद्धतिमिव पिशिताशिसेव्यां निरात्मकशरीरां च गार्हस्थ्यप्रवृत्तिमित्र मृतवारणविधुरां रक्तभुलभां च विलोक्य रणभुवम् 'किमिति ओदोयांसो हिंस्यन्ते जन्तवः । पालव्यजन समूहः स एव द्विण्डीरोऽधिकफो यस्यां सा 'हिपहीरोऽधिकफः फेनः' इत्यमरः, परेता मृता ये तुरगा हयास्त एवं लयस्तरङ्गास्तासां परम्पराः सन्ततयस्तासां कुलेन समूहेन फूलं कषा तटमुद्रुजा, कर्षणरयेण प्रवाह वेगेना बला-नता भवशिष्टा मृत शंषा अझोहिणी सेना यस्याः सा, क्षतजधुनी रुधिर१० नदी क्षणादिव प्रवहत् प्रवहति स्म । ६२४२. नदेवमिति-तत्तस्मात् एवमनेन प्रकारेण मारिसं पादातं पदातिसमूहो यस्मिस्तस्मिन् , दारित खपिडतं हास्तिक हस्तिसमूहो यस्मिस्तस्मिन् , नश्यन्नष्टीमवद् भाश्चीयमश्वसमूहो यस्मिस्तस्मिन् , विपरिवर्तिता विपर्याखिला स्थकल्या रघसमूहो यस्मिंस्तस्मिन् , ' सारविरहिताः सूतशून्या रथिनः स्यन्दना रोहा यस्मितस्मिन् , रथारोहै रथिमिः क्षुण्णाः क्षत्तारः सता यस्मितस्मिन् : 'सतः क्षत्ता च सारथिः' १५ इत्यमरः, स्तम्बेरमाणां हस्तिनां मरणेन मृत्युना सविषादाः सखेदा निषादिनो हस्पारोहा यस्मितस्मिन् , इस्त्यारोईनिषादिमिविरहिसा हस्तिनो गा यस्मिस्तस्मिन् , तुरङ्गमानां सप्तीनां विगमेन विनाशेन सीदन्तो दुःखीभवन्तः सादिनो हयारोहा यस्मिस्तस्मिन् , अश्वारोहै। सादिभिर्विवनिता रहिता अश्वा यस्मिस्तधाभूते च सैन्ये सति, त्रिशमामिव रजनीमिय दीघनिया मृत्युना पने बहुकालव्यापिन्या निद्रयोपद्रुता बहुला बड्यो जना यस्यां तथाभूतां, तमोगुणो ध्वान्तगुणः प्रभवः कारणं यस्याः सा पक्ष २० तमोगुणः सत्त्वादिगुणेष्वन्यतमो गुणस्त स्मारमवतीति तथा ताम् , बौद्ध पद्धतिमित्र बौद्धं मार्गमिय पिशित शिभिर्मासमोजिभिजनैः पक्षे मांसभक्षकैः शालादिजन्तुभिः सेन्या सेवनीयाम् निरात्मकम् आस्मास्तित्वरहितं शरीरं यस्यां तां पक्षे निरात्मकानि शरीररहितानि भूतानि शरीराणि हस्यां ताम्, गाइस्थ्य प्रवृत्तिमित्र गृहस्थधर्मप्रवृत्तिमित्र मृतवारणविधुरां मृतानां वारणेन प्रतिषेधेन विधुरां रहितां पक्षे मृतवारणेनमतजैविधुन दुःखयुको 'वारणं प्रतिषेधे स्याद्वारणस्तु मतङ्गजे' इति मेदिनी, रकसुलमा च २५ रफानामनुरागसहितानां सुलमा पक्षे रकन रुधिरेग सुलमा रणभुवं समरमदिनों विठोकर दृष्टा 'इती श्वेत कमल थे। उसने अपने वेगसे हाथीरूपी गोल चट्टानोंको बहा दिया था। तैरते हुए चामरोंका समूह ही उसमें फेन था । वह मरे हुए घोड़ेयो तरंगों की श्रेणीसे युक्त किनारेको नष्ट कर रही थी और खींचने के वेगसे उसने अवशिष्ट सेनाको खींच लिया था। ६२४९. इस तरह जिसमें पैदल सैनिक मारे गये थे, हाथियोंके समूह विदारित किये ३० गये थे, घोड़ों के समूह नष्ट हो गये थे, रथों के समूह उलट गये थे, रथों के सवार सारथियोंसे रहित हो गये थे, रथोंपर चढ़कर जिसमें सारथि मार दिये गये थे, हाथियोंके मरणसे जिसमें महाबत खेदसहित हो गये थे, जिसमें हाथी हाथियों के सवारोंसे रहित थे, घोड़ों के नष्ट हो जानेसे जिसमें धुड़सवार दुःखी हो रहे थे और जिसमें घोड़े घुड़सवारोंसे रहित थे. ऐसी सेनाके होनेपर रणभूमिको देखकर जीवन्धरस्वामी सोचने लगे कि इस तरह क्षुद्र जीव क्यों मारे जा रहे हैं ? वही शत्रु जड़सहित नष्ट करने के योग्य है । उस समय रणभूमि त्रियामा-रात्रिके समान जान पड़ती थी क्योंकि जिस प्रकार त्रियामामें बहुत आदमी दीर्धनिद्रा--गहरी नींदसे उपद्भुत रहते हैं उसी प्रकार उस रणभूमि में भी बहुत आदमी
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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