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________________ ५५ -वर्णनम् ] दशमो लम्मा घटितकठोरकुठारपाटितविटापिबिशङ्कटीकृतसंकटारण्यसरणिनि खननकरणनिपुणखानित्रकगणक्षणसंपादितोदम्भःकूपशुम्भितमरुभुवि तादात्विककृत्यदक्षतक्ष कसार्थसामर्थ्यवैचित्र्यरचितवहित्रसुतरकाकपेयसरिति पुरःप्रसारितभूरिभीकर कलकलारवकादिशोककेसरिणि चरणकषणोत्थितधरणीविसृमररेणुविसरमसृणितमयूखमालिनि वारणपरिबृढोत्पाटितपाश्वपादपपरिघसप्रतिघाध्वनि 'कण्ठरज्जु कषणोन्मथितत्वगालान रनस्पत्युद्वोक्षणवनचरानुमोयमानवारणवर्मणि प्रतिगजगन्धाघ्राणप्रती. ५ पगामिकान नद्विप प्रतिग्रहकृताग्रहभटप्राग्रहर कोलाहलभरितहरिति द्विरदतु रगखरकरभमहिषमेषवलनेन सातिशयम्रोडनेन भ्रष्टा पातिता गोणी पृष्ट मारो यैस्तथाभूता ये दुष्टशाक्वरा दुश्वृषभास्तेदृरेण वित्रासिता मपिता ये यात्रिकाः सहायिनस्तयां संबाधो विमर्दो यस्मिस्तस्मिन् , चण्डप्ति-चण्डा अत्यन्तकोपना ये चण्डाला जनङ्ग मास्तेषां पटकस्य समूहस्य निबिड मुष्टिषु सघनमुष्टिषु घटिता धृता ये कठोर कुठारास्तीक्ष्णपरशवस्तैः पाटिता विदारिता ये विपिनो वृक्षास्तैत्रिशक्करीकृता विशाळीकृता संकटारण्यसरणि: संकीर्ण- १० कान्तारमा यस्मितस्मिन् , खननेति-रखनन करणे क्षोदनकायें निपुणाश्चतुरा य खानित्रकाः खननकर्तारस्तेषां गणेन समूहेन क्षणेनाल्पनैव कालेन सम्पादिता निर्मिता ये उदम्माकूपा उस्कृष्ट जलप्रहयस्तैः सुम्मिता शोभिता मरुभूरजःस्थानभूमिस्मिस्तस्मिन् , तादात्विकेति-वादाधिककृत्ये तात्कालिककार्य दक्षाः समर्था ये तक्षकाः स्थपतयस्तेषां सार्थस्य समूहस्य यत् सामर्थ्य नैचित्र्यं शक्तिमत्ववैविध्यं तेन रचितैवहिनौंकाभिः सुतरा कारपेया गभीराः सरितो नद्यो यस्मिस्तस्मिन् , पुर इति-पुरः प्रसारितोऽग्रे विस्तारितो यो १५ भूरेिमीकरः प्रचुरमयोत्पादकः कलकारयः FINोग मानिमा मयताः केसरिणो मृगेन्द्रा यम्निस्तस्मिन् , चरणेति--चरणानां पादानां कषणेनोस्थित उत्पतितो यो धरण्याः पृथिव्या विस्मरो विसरण. शीको रेगुबिसरो धूलिसमूहस्तेन मसृणितो मलिनो मयूखमाली दिनकरो यस्मिस्तस्मिन् , धारणेति --- वारणपरिवृद्वर्गजराजैरुत्पाटिता उन्मलिसा ये पाश्चपादपा निकटानोकहास्त एव परिघा अर्गलास्तैः सप्रतिघः सवाघोऽत्रा माग यस्मिस्तस्मिन्, कण्ठेति-परमजूनां मोवारश्मीनां कषणेन घर्षणेनोन्मथिता २० स्वग बलकलं येषां तथाभूत! य आलानवनस्पतयो बन्धनवृक्षास्तेषामुद्रीक्षणेन--विलोकनेन चनचरैः किरातैरनुमीयमानं धारणवर्म गशरीरं यस्मिस्तस्मिन् 'शरीरं वर्म विग्रहः' इत्यमरः, प्रतिगजेति-- प्रतिगजानां प्रतिकारकरिणां गन्धस्याघ्राणेन नासाविषयीकरणेन प्रतीपगामिनः प्रतिकूलगामिनो ये काननद्विपाः कान्तारकरिणास्तेषां प्रतिग्रहे बन्धने कृताग्रहा विहिताग्रहा ये मटनाग्रहराः सैनिकश्रेष्टास्तेषां कोलाह लेन कलकल शब्देन भारेता हरितो दिशो यस्मिस्तस्मिन् , द्विरदेति-द्विरदा गजाः, तुगा भवाः, २५ गिरा देनेवाले दुष्ट बैल के द्वारा दूरसे ही डराये हुए यात्रीजनोंके द्वारा जिसमें भीड़-भाड़ उत्पन्न हो रही थी। तीक्ष्ण प्रकृति के धारक चाण्डालोंके समूहसे मजबूत मुट्टियों द्वारा पकड़े हुए कठोर कुल्हाड़ों के द्वारा विदारित वृक्षांसे जिसमें जंगल के संकीण मागे विशाल बनाये जा रहे थे। स्त्रोदने के कार्य में निपुण खुद्दारों के समूह से क्षणभरमें तैयार किये हुए ऊपर तक जलसे भरे कुओंसे जिसमें मरुस्थलकी भूमि सुशोभित हो रही थी। तात्कालिक कार्योके करने में ३० निपुण बढ़इयों के समूहकी सामर्यको विचित्रतासे बनायी गयी नौकाओंके द्वारा जिसमें गहरी नदियाँ सुख से तैरने योग्य हो गयी थी। आगे फैले हुए तथा बहुत भारी भय उत्पन्न करनेवाले जिसके कल-कल शब्दसे सिंह भयभीत होकर भाग गये थे। पैरोंकी रगड़से उठी हुई पृथिवीकी फैलनेवाली धूलिके समूहसे जिसने सूर्य को मटमैला कर दिया था। गजराजों के द्वारा कण्टरजक्षतत्वचः। गजवष्म किरातेभ्य: वः 4. ॥७६॥ AV रघुवंश ४ सर्ग ।
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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