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________________ गद्यचिन्तामणिः [ २४१ सैन्यप्रयाण लतात्वर्यमाणराज परिबर्हचारिणि राजकीयदवीय प्रदेश प्रापणश्रवणक्षण सत्वरसं भाण्डायमानभाण्डागारिकपरिषदि प्रश्रयप्रणतोत्थित गुणधना पृच्छ्यमान गुरुजन गौरव विहिताशिषि प्रतिनिवर्तनप्रत्याशाविधुरभीरुचारु' भनिर्दिश्यमाननिधिन्यास कोणक्षोणिनि विलम्बितलम्बोदरदासे रक समाह्वान ३५४ पौनःपुन्यखिन्न स्विन्नपुरोयायिनि विस्मृत विस्मयनीयाहार्याहरण धिषणाप्रेष्यमाण भुजिष्याभाष्यमाण५ व्यश्तेतर विसंवादवचसि प्रसभप्रयाणप्रवणतानुष्ठितपृष्ठावलोकनानुवर्तमानप्रतिनिवर्त्य मानसनाभिसंसदि प्रगुणवलन भ्रष्टगोणीक दुष्टशाक्वरदूरवित्रासितया त्रिकसंबाधे चण्डचण्डाल पेटक नित्रिमुष्टिकवचैरुल्लसन्तः शोभमाना ये सौबिलवल्लभाः कञ्चुकी पतयस्तेषां करपल्लवैः पाणिकिसलयैः कलिता ता या विनासका भयोत्पादकवेत्रवल्ल्यस्वामित्वर्यमाणाः शैथ्यूकार्यमाणा ये राजानस्तेषां परिष नृपापरियदास्तेषां धारिणि, राजकोयेति दवीयः प्रवेशस्य दूरतरप्रदेशस्य प्रापणं प्रापकं वचनं १० राजकीयं राजसम्बन्धि यद् दवयः प्रदेशप्रापणं तस्य श्रवणक्षणे समाकर्णनात्रसरे सत्वरं शीघ्रं यथा स्यातथा संभावना बाद भागद्वागारिकपरिषद् माण्डागारनियुकजनसमूह यस्मिंस्तस्मिन् प्रश्नयेति--प्रश्रयेण विनयेन आदौ प्रणताः पश्चादुत्थिता ये गुणना गुणिजन स्तैरापृच्छयमाना ये गुरुजनास्तेषां गौरवेण विहिता आतीर्यस्मिस्वस्मिन् प्रतिनिवर्तनेति - प्रतिनिवर्तनस्य प्रत्यागमनस्य या प्रकाशा तया विवरा दुःखिताः भीरवो भशीकाश्च ये चारुनयः सुन्दर सैनिकास्तैर्निदिवमाना १५ गृहवासिनेपः प्रदश्यमाना निधिभ्यासस्य धननिक्षेपस्य कोणसोणी कोणभूमिर्यस्मिंस्तस्मिन् विठ म्विनेति — विकम्पितः कृतकालक्षेपो यो लम्बोदरस्तुन्दिको दासेरको दास्या अपत्यं तस्य समाह्वानस्य आकारणस्य यत्वौनःपुण्यं तेन खिन्नः खेायुक्तः स्विनः स्वेदयुक्तश्च पुरोयायी अप्रेसरो यस्मिंस्तस्मिन् विस्मृति - विस्मृतानि स्मृत्यगोचराणि विस्मयनीयानि विस्मयोत्पादकानि यान्याहार्याणि भूषणानि तेषामाहरणधिषणया आनयनमनीषया प्रेष्यमाणा ये भुजिष्या दासास्तैरामाध्यमाणानि कथ्यमानानि २० व्यफेसर विसंवादानि विरोधयुक्तानि वचांसि यस्मिंस्तस्मिन् प्रसभेति - प्रसभप्रयाणे हरु प्रयाणे या प्रवणता निपुणता तथानुष्टितं कृतं यत् पृष्ठावलोकनं पश्चाद्दृष्टिप्रसारणं तेनानुवर्तमाना अनुगच्छन्ती प्रतिनिवर्त्य मानसनाभीनां प्रतिनिवर्तनोचतसहोदराणां संसत्समूहो यस्मिंस्तस्मिन्, प्रगुणेति - प्रगुण धारण की हुई, भयोत्पादक वेत्रलताओंसे जिसमें राजाके उपकरण धारण करनेवाले मनुष्योंको शीघ्र चलने के लिए प्रेरित किया जा रहा था । राजाके अत्यन्त दूरवर्ती स्थान तक यह सब २५ सामान भेजना है, यह समाचार सुनने के समय ही जिसमें इकट्ठे हुए भाण्डारियों का समूह शीघ्रता से युक्त हो गया था । विनयपूर्वक नमस्कार किये जानेके बाद खड़े हुए गुणरूपी धनके धारक मनुष्योंके द्वारा पूछे जानेवाले गुरुजन जिसमें गौरव के साथ आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे। लौटने की आशासे रहित भीरु योद्धाओंके द्वारा जिसमें धन रखने के कोने से युक्त पृथिवी दिखायी जा रही थी। पीछे देर करनेवाले स्थूलपेट के धारक दासी पुत्रोंको बार३० बार बुलाने से जिसमें आगे जानेवाले लोग खिन्न तथा पसीनासे तर हो गये थे । भूले हुए आश्चर्यकारक आभूषणों को लाने की बुद्धिसे भेजे हुए सेवकों के द्वारा जिसमें अस्पष्ट तथा विरोधपूर्ण वचन कहे जा रहे थे। वेगसे चलने की दक्षतासे किये हुए पृष्ठावलोकनसे जिसमें लौटने वाले सगे-सम्बन्धियों का समूह पुनः पीछे-पीछे चलने लगता था । सीधी चालसे गोण १. क० प्रेक्ष्यमाण - । २. म० चारभट । ३. भयभीत योद्धा लौटनेको आशासे रहित होने के कारण ३५ अपने घर के लोगोंको घरकी पृथिवीका वह कोना बतला रहे थे जिसमें कि धन गड़ा हुआ था । ४. कुछ लोग बड़े वेग से आगे जा रहे थे, उनके साथी निराश हो लौटने वाले ने क्यों हो पीछेको ओर मुड़कर देखा त्योंही लौटने वाले पुनः उनके पीछे चलने लगे । परन्तु आगे जानेवाले
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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