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________________ नवसो लम्भः ૩૨૭ वृत्तान्तः ] स्तनाभ्यामुद्भासमानाम्, पल्लविताभ्यामिवाङ्गुलीभिः कोरकिताभ्यामिवाङ्गदमौक्तिकैः कुसुमिताभ्यामिव करसं भर्वहुलताभ्यां विराजमानाम्, मदनारोहलीला डोलायमानया कपाशश्रियालंकृताम् तिलकुसुमसमान रूपन्दसागरवुदायमानया नासया समेताम्, विकचविच किल्कुसुमाकीर्णकेशकलापाम् तारकिताम्बरामिव विभावरीम् कल्पलतामिव कामफलप्रदाम् जान कोमिय रामोपशोभिताम्, समुद्रवेलामिव विचित्ररत्नभूषिताम् नारीजन - ५ तिलकभूतां कुमारी त्रिलोक्य विस्मयस्मेरचक्षुः 'अहो मदनमहाराज विजयसाधनानां समवाय इव या लक्ष्यते । ६ २२१ तथा हि- तस्य धनुर्यष्टिरिव भ्रूलते, मधुकरमालामयी ज्येव नीलालकद्युतिः, मिलिनाभ्यां रथाङ्गनामभ्यामिव चक्रवाकाभ्यामित्र स्तनाभ्यां कुचाभ्याम् उद्भासमानां शोभमानाम्, अनुलोभिः कराखाभिः पल्लविताभ्यामित्र किसकययुक्ताभ्यामित्र अङ्गदम कि है: केयूरमुक्ताफलैः कोर- ६० किताभ्यामिव कुङ्मलिताभ्यामिव करसंभवैर्नखैः कुधुमितास्यामित्र पुष्पिताभ्यामिव बाहुलताभ्यां भुजवल्लीभ्यां विराजमानां शोभमानाम्, मदनारोहस्य कामाधिष्ठानस्य लीलाडोला क्रीडान्दोलिका तदाचरन्त्या कर्णपाशश्रिया कर्णालङ्कारलक्ष्म्या अलंकृतां शोभिताम्, विकसितेन प्रफुल्लेन तिलकुसुमेन क्षुरक समानया सदस्या रूपसौन्दर्य मैत्र सागरो लावण्यजलधिस्तस्य बुदबुदायमानया बुदसंनिभया नासया प्राणेन समेत सहिताम्, विकचानि विकसितानि चानि विचक्लिकुसुमानि मल्लिकापुष्पाणि १५ तैरवकीर्णो व्याप्तः केशकलापो यस्यास्ताम्, अतएव तारकितं नक्षत्रतमम्बरं गगनं यस्यां तथाभूतां विभामिरजनीमिव कल्पलतामित्र कल्पवल्लीमिव कामफलप्रदाम् इच्छानुरूपफलदायिनी पक्षे काम एव फलं ददातीति तथा मदनरूपफलदायिनी ताम्, जानकीमित्र सीतामिव रामेण दाशरथिनोपशोभिता ताम् पक्षे रामाभिः स्त्रीभिरुपशोभिता सामू, समुद्र वेलामित्र तोयधितटीभित्र विचित्ररत्नैर्नानामणिभिर्भूषिता ताम् एकग्राभरणरत्नैरलङ्कृता पक्षे रत्नाकरोत्पन्नैर्नानारत्नैरलंकृता च नारीजन तिव किभूतां ललनाकुल- २० तिळकरूपाम् । $ २२१ अथ तस्या -- मदनमहाराज विजयसाधनानां समवायत्वं साधयितुमाह तथा हाँसि 'तस्य मदनमहाराजस्य धनुर्यष्टिरिव चापयष्टिरिव झूलते अकुटिल, मधुकर मालामयो भ्रमरतिनिर्मिता रहनेपर भी मिले हुए चक्रवोंके समान दिखनेवाले स्तनोंसे जो सुशोभित थी । अंगुलियों से पल्लवित के समान, बाजूबन्दोंके मोतियोंसे बोड़ियोंसे युक्तके समान और नखाँसे पुष्पितके २५ समान दिखनेवाली भुज लताओंसे जो सुशोभित थी। जो कामदेव के चढ़नेकी डोली के समान आचरण करनेवाली कर्णपाशकी लक्ष्मीसे अलंकृत थी । खिले हुए तिलके फूल के समान अथवा रूप और सौन्दर्य के सागर के बबूलेके समान दिखनेवाली नाकसे सहित थी । जिसके बालोंका समूह खिले हुए विचलिके फूलोंसे व्याप्त था और उनसे जो ताराआंसे युक्त आकाशसे सहित रात्रिके समान जान पड़ती थी। जो कल्पलता के समान कामरूपी फल ३० ( पक्ष में वाछित फल ) को देनेवाली थी। सीता के समान रामोपशोभिता - रामसे सुशोभित ( पक्ष में रामाओं - स्त्रियों में सुशोभित ) थी । समुद्रकी वेला के समान नाना प्रकार के रत्नोंसे त्रिभूषित थी और जो स्त्रियोंके तिलकके समान थी ऐसी कुमारी - सुरमंजरीको देखकर आश्चर्य से जिनके नेत्र विकसित हो रहे थे ऐसे जीबन्धरकुमार विचार करने लगे कि 'अहो ! यह स्त्री तो कामरूपी महाराज के विजय साधनोंके समूह के समान जान पड़ती है। § २२१. देखो न, उसके धनुर्दण्डके समान इसकी भ्रुकुटिलताएँ हैं, भ्रमरपंक्तिरूप डोरीके १. ० दोला । २. मल्लिका, इति टि० । ३५
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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