SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RENA R . O विषयानुक्रमणिका ... . . प्रथम लम्भ मंगलाचरण तथा ग्रन्थाक्तारकी पीठिका १-८ १-२. जम्बूद्वीपके दक्षिण भागमें स्थित भारत खण्ड में हेमांगद नामका देश है 4-१५ ३-४. हेमांगददेशमें राजपुरी नगरी है १५-२६ ५-६, राजपुरी नगरीमें राजा सत्यन्धर राज्य करते थे २७-३१ ७. उनकी रानीका नाम विजया था। ३१-३७ ८. रानीमें विषयासक्तिके कारण राजा सत्यन्धर काष्ठाङ्गार नामक मन्त्रीको राज्य देने लगे। ३७-३८ ९. अन्य मन्त्रिोंने इसका विरोध किया, राजाको समझाया, पर वह कुछ समझ नहीं सका। ३८-४१ १०-१४. राजा रानीके साथ भोग-विलासमें निमग्न हो गया। रानीने तीन स्वप्न देखे और पतिसे उनका फल पूछा। ४१-४७ १५-१६. राजाने कहा कि तुम्हारे पुत्र होगा और उसकी आठ स्त्रियां होंगी, पर अशोक वृक्षके गिरनेका फल राजाने नहीं बताया। इससे रानी शंकित हो मूच्छित हो गयी, राजाने उसे समझाया। ४७-५२ १९-२०. रानी विजयाने गर्भ धारण किया तथा राजाने भावी पुत्रको रक्षाके उद्देश्यसे शाकाशमें चलनेवाला मयूर यन्त्र बनवाया। ५२-५४ २१-२६. काष्ठांगारने अपने मन्त्रिमण्डलमें राजद्रोहका प्रस्ताव रखकर उससे संमति मांगो, पर धर्मदत्त मन्त्रीने इसका डटकर विरोध किया। ५४-६१ २७-३१. काष्ठांगारने राजभवनको घेर लिया, प्रतीहारीने राजाको सूचना दी, राजा युद्धके लिए चलने लगा, पर रानीको भूच्छित देख समझानेके लिए बाध्य हुआ। मूच्छित अवस्थामें हो वह उसे मयूर यन्त्रमें बैठा भाग्यके भरोसे छोड़ युद्धके लिए निकल पड़ा। शत्रुको पीछे हटाया, परन्तु युद्धकी विभीषिका देख विरक्त हो संन्यास लेकर बैठ गया और काष्ठांगारने उसे मार डाला। ६२-६९ ३२-३६. काष्ठांगार राजा बन गया, रानी विजयाने रात्रिके निविड़ पन्धकारके बीच राजपुरीके श्मशानमें पूत्रको जन्म दिया। एक देवीने चम्पकमाला दासीका देष रख विजयाने सान्त्वना दी। . . ७०-७६ ३७-३९. गन्धोत्कट वैश्य, अपने मृतपुत्रको छोड़ श्मशानमें मुनिराजके पचनानुसार अन्यपुत्रकी खोजमें था । वहाँ विजया रानीके पुत्रको पाकर प्रसन्न हुआ और जीवन्धर नाम रखकर घर ले गया । और रानी दण्डकवनके तपोवनमें रहने लगी। ४०-४३. गन्धोत्कटने पुत्रोत्सव किया और मूर्ख काष्ठांगारने समझा कि यह उत्सव राज्य. प्रापिके उपलक्षमें हो रहा है इसलिए उसने राज्यकोषसे उसे बहुत-सा धन दिया। बालक जीवन्धर बाल्यक्रीड़ा करता हुआ पाँच वर्षका हुआ । ७९-८३ ४४-४५. गन्धोत्कटने शुभ मुहूर्तमें जीवन्धरका विद्यारम्भ कराया। ८४-८८
SR No.090172
Book TitleGadyachintamani
Original Sutra AuthorVadibhsinhsuri
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1968
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy