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गचिन्तामणि:
समय बादिके निर्धारणमें मैंने उपलब्ध सामग्रीके आधारपर मात्र अपने विचार प्रकट किये है बाग्रह नहीं। अपनी योग्यता और साधन-सामग्रीके अनुसार मैंने इस संस्करणको संस्कृत-हिन्दी टीका, प्रस्तावना, तथा परिशिष्टोंसे लाभदायक बनानेका प्रयत्न किया है। मेरे इस साहित्यिक अनुष्ठानसे अध्येता और अध्यापकोंको अध्ययन और अध्यापनमें कुछ भी सहायता प्राप्त हई तो मैं अपने प्रयासको सफल समझंगा।
अन्तमें अपनी अल्पज्ञ ताके कारण हुई त्रुटियोंपर क्षमा याचना करता हुआ प्रस्तावनालेख समाप्त करता हूँ।
'सरिर्वादीसिंहोऽसावखिलागमवारिधिः । काव्यशास्त्ररहस्यज्ञः क्षमता स्खलितं मम ॥
वर्णीमवन, सागर दीपमालिका वीरनिर्वाण संवत् २४९३
विनम्र पन्नालाल जैन