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पच्छायारइण्णवं
शाखाएँ हुई -- (१) कौशाम्बिका (२) सूक्तमुक्तिका, (३) कौटुम्बिका और (४) चन्द्रनागरी ।
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आर्य सुहस्ति के आर्य रोहण आदि बारह शिष्य हुए, उनमें गोत्रीय आय रोहण से 'उद्देह' नामक गण हुआ। उस गण की भी चार शाखाएं हुईं (१ औदुम्बरिका ( २ ) मासपूरिका ( ३, मतिपत्रिका और (४) पूर्ण पत्रिका उद्देहगण की उपरोक्त चार शाखाओं के अतिरिक्त छ: कुल भी हुए (१) नागभूतिक, (२) सोमभूतिक, (३) आर्द्रगच्छ, (४) हस्तलीय, (५) नन्दीय और (६) पारिहासिक |
आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर श्रीगुप्त से चारणगण निकला । चारणगण की चार शाखाएं हुईं (१) हरितमालाकारी, (२) शंकाशिया (३) गवेधुका और (४) वज्रनागरी । चारणगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त सात कुल भी हुए - ( १ ) वलय, (२) प्रीतिधार्मिक, (३) हालीय, (४) पुष्पमैत्रीय, (५) मालीय, (६) आर्य चेटक और (७) कृष्णसह ।
आर्य सुहस्ति के ही अन्य स्थविर भद्रया से उडुवाटिकगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई - (१) चम्पका (२) भद्रिका, (३) काकंदिका और (४) मेखलिका । उद्घाटिकगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त तीन कुल हुए - - ( १ ) भद्रयशस्क, (२) भद्रगुप्तिक और (३) यशोभद्रिक
आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर कामद्धि से वैशवाटिकगण निकला, उसकी भी चार शाखाएँ हुई -- (१) श्रावस्तिका (२) राज्यपालिका (३) अन्तरिजिका और ४) क्षेमलिज्जिका । वैशचाटिकगण के कुल भी चार हुए -- (१) गणिक, (२) मेधिक (३) कामद्धिक और (४) इन्द्रपुरक ।
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आर्य सुहस्ति के ही एक अन्य शिष्य स्थविर तिष्यगुप्त से मानवगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई - - ( १ ) काश्यपका (२) गौतमीयका, (३) वशिष्टिका और मौराष्ट्रिका | मानवगण के तीन कुल भी हुए - (१) ऋषिगुप्तिय, (२) ऋषिदत्तिक और (३) अभिजयंत । आर्य सुहस्ति के ही दो अन्य शिष्यों सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध से कोटिक्रमण निकला, उसकी भी चार शाखाएँ हुई 1१) उच्चैर्नागरी, (२) विद्याधरी, (३) वज्री और (४) माध्यमिका । इस कोटिकगण के