SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसि-भासियाई कोई हर्ज नहीं है हम सात्विक उपायों से शक्ति प्राप्त करें। किन्तु प्रश्न यह है कि हम शक्ति का उपयोग किस ढंग से करते हैं। शक्ति की प्राप्ति उतना महत्व नहीं रखती जितना कि उसका विवेकपूर्ण उपयोग । शक्ति का सही उपयोग मानव को देवत्व की ओर ले जाता है तो शक्ति का अनुचित उपयोग राक्षसत्व की ओर । शक्ति का गलत उपयोग करके ही तो रावण राक्षस कहलाया और उसका सही उपयोग कर राम ने देवत्व पाया था। अतिर्षि साधक को प्रेरणा दे रहे हैं । तुम्हें शक्ति प्राप्त हुई है उसका उपयोग संथम में करें । श्रीमद् रामचन्दजी के शब्दों में कहूं तो "देह होय तो संयम ने माटे।" संयम के लिये किया गया पुरुषार्थ आत्म-विकास में सहायक होता है पुष्पों का आनंद लेनेवाला माली भी इतनी दुद्धि रखता है बीज-कली की रक्षा करता है। हमें भी अध्यात्मरस कर अनुभव करना है शक्ति को संयम लगाना होगा । बीज जब तक अपने आपको मिट्टी में गला नहीं देता तब तक पौधे और पुष्प के रूप में बदल नहीं सकता। इसी प्रकार जब तक हम अपनी शक्तियों को संग्रम में परिणत नहीं होने नहीं देते तब तक आत्मा आत्मिक शान्ति को नहीं पा सकता। टीका-जातं जातं वीर्य संयमेन सम्यक् योजयेत् तु पुष्पादिभिर् मुकुलपुष्पफले रक्षन्निष पुष्पाणामादिकारणं बीजम् । गतार्थः। पर्व से सिद्ध बुद्धे विरते विपावे दत्ते दविए, अलं ताती णो पुणरवि इश्वत्थं हव्वमागच्छति ति येमि । वेसमणिशं नाम अज्झयनं 1 अस्निगारिया शाताई ॥ इति समाप्तानि ऋषिभाषितानि । डॉक्टर शुचिंग लिखते हैं: इस अन्तिम और विस्तृत अध्ययन में बहुत सी समस्याएं बिन - सुलझी रह जाती हैं। बौदहवी गाथा में बताया गया है कि पृथ्वी के आखिरी छोर से सागर की झालर-सी लहरों से अथवा अग्नि में से प्राणियों का जीवन निर्माण होता है। ऐसा लगता है कि मृत्यु के बाद परिणाम के दिन वे फिर से जीवित होंगे। यह बात अस्पष्ट है और कृत कमों के पश्चात्ताप को रोकती है। आत्मा (कर्म) 'फलों का जीवित भंडार है। इस बात का दूसरी रीति से वर्णन भी संभावित नहीं है । गाथा २२ में तेल पात्र घर की कथा आई है वह जातक १,५०३ में भायी है 1 गाथा ३७ में बहुवचन के स्थान पर एक वचन चाहिये । प्रथम शब्द नरेन्द्र और जिनेन्द्र का उल्लेख करता है । गाथा ३८ का पाठ सम्म कारण फासिसा पुणो न विरमे नती"का साम्य दशवकालिक के निम्न पाठ से मिलता है एवं खलु भिक्षु अहासूर्य सम्म कायेणं फासिता पालित्ता भवई । वहां " बहिया" अर्थ में शारीरिक शक्ति का उल्लेख किया गया है। यहाँ कार्य स्पर्श काया के द्वारा स्पर्शना बताई गई है। गाथा ३९-४० में साधना की सिद्धि के लिये दृष्टान्त दिये गये हैं। दशवे० अ० ५ गा० में उसका साम्य है। किन्तु दशवकालिक सूत्र में जहाँ अगधनकुल के रार्प को अच्छे रुप में बताया गया है। वे गन्धन सर्प की भांति अपने विष को पुनः असते नहीं है। जबकि यहाँ उनके लिये धिक्कार जनक कार्य बताया है, कुप्पिकुल के सर्प के रूप में भी यहां कुछ परिवर्तन हैं। ४३ वें श्लोक में ऋद्धियों को हीन बताया गया है। गर्व और उसके उपयोग को खराब बताया गया है। ४४ बी गाथा में बताया गया है कि प्रेमिका के हाथ से दिया गया विष भी मारक होता है। अथवा प्रेमी स्वी प्रेम में विफल होने पर विष पिला सकती है और प्राश ले सकती है, इसी प्रकार नदी में तैरने के लिये मछली के कुछ गुण नहीं लिए तोएब जागे और विष प्राह की पकड़ में आ सकते हैं। पचासवें श्लोक में बताया गया है बुद्धिशाली और स्वर्ग में जानेवाले प्राणी अपने विचार के अनुसार जीवन का निर्माण करते है और कार्य करने की शक्ति को रोकते हैं। हर रूप में वह ठीक नहीं है । एकावन वे इलोक में भिजएहि पाठ आया है वह अनुचित है उसके स्थान पर तितेहिं चाहिये। .. श्रेपन। लोक में सम्बोधन का समावेश किया गया है। विचारक अपनी शक्ति का संयम में प्रयोग करें, वैसे शनैः शनैः वह विकास करता है और उसके पत्र पुन और फलों का आस्वादन करता है। । . अन्त में डॉक्टर शुनिंग लिखते हैं-"इसिभासियाई" समझने का हमारा प्रथम प्रयास है । इसके प्रकाशन और अनुवाद के लिये थोडी आवश्यक सूचनाएं यहां दी गई हैं। इति वैश्रमण -अर्हताप्रोक्तं पंचचत्वारिंशदध्ययनम् । समाप्त ऋषिभाषितसूत्रम् ॥
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy