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________________ पैंतालीसवाँ अध्ययन २९३ जिसकी तृष्णा पर चेक नहीं है बह भी अपने जीवन में ऐक्सीडेन्ट (दुर्घटना) करता है। हिरोशिमा कोरिया, लाओस की युद्ध की ज्वाला उसी ऐक्सीडेन्ट से आयी है। दुनियां के आधे से अधिक सेघर्ष तृष्णा ब्रेक के अभाव की कहानी कह रहे हैं। एक इंग्लिश विचारक कहता हैDesire is burniug fire, he who fails into never rises again. 3781 3 SUTTI उसमें जो गिरा है बह फिर कमी उठा नहीं है।-'जेम्स आफ इस्लाम' चम्पतराय. स्वर्णमृग के मोह ने सीता को हजार हजार विपत्तियों बीच पटका था ! सोने ने भाई के भाई चारे को भुलाया था। एक विचारक और बोलता है।-I despise gold, it bus persuaded many men in many an evil.-लाटस. मैं सोने को धिकार क्योंकि उनने भोर मनु को पाप दाने के लिये फुसलाया है। इसीलिये अर्हतर्षि मृष्णा से शांति के लिये खतरनाक बनाया है । भगवान महावीर ने अन्तिम देशमा में फरमाया था-सम्पत्ति के द्वारा मानव शांति नहीं पा सकता । टीका:-कामा मृषा सुखिनो व्याजशीलाः तीक्ष्णाः साप्तकर्मानुसारिणी तृष्णा चासातं च शीघ्रं च तृष्णा कामश्छिनत्ति देहिनाम् । गतार्थः ।। सदेवोरगगंधव्वं सतिरिक्त्रं समाणुसं। वैत्तं तेहिं जग किच्छ तण्हापासणिबंधणं ॥ १७ ॥ अर्थ--देव नाग, गंधर्व तिर्थच, मानव के साथ संपूर्ण लोक का उसने परित्याग कर दिया है जिसने तृष्णा का बंधन तोड़ दिया है। गुजराती भाषान्तर:- જે માણસે તૃષ્ણા (વિષયાસક્તિ) નું બંધન તોડી નાખ્યું છે તે માણસે દેવ, નાગ, ગંધર્વ, તિર્યંચ માનવીને સાથે આ સંપૂર્ણ લકનો ત્યાગ કરી દીધો છે, तृष्णा का गुलाम सारी दुनियां का गुलाम है, क्योंकि मन की तृष्णा उसे दुनियां की गुलामी करने के लिये प्रेरित करती है। अध्यात्म योगी कवि आनंदघनजी अपने आध्यात्म पदमें कहते हैं आशा दासी के जे जाया, ते सिहं जग के दाला । जिसने तृष्णाएर विजय पाई है उसने देव गंधर्व तिर्यच और मानव संपूर्ण लोक पर विजय पाई है। 'निःस्पृहस्य तण जगत् ।' निस्पृह के लिये सारी दुनिया तृण तुल्य है । अक्खोवंगो बणे लेखो, ताच जं जउस्स य । णामणं उसुणो जे च, जुत्तं तो कज्ज-कारणं ॥४८॥ अर्थः- आंख में अंजन लगाना, वण ( घाब) पर लेप करना जतु-लाख का तपाना और बाण का झुकाना इन सब के पीछे ठीक ठीक कार्यकारण परंपरा काम कर रही है । गुजराती भाषान्तर: આંખમાં અંજન જવું, ત્રણ (ઘા) ઉપર લેપ લગાડો, જતુ એટલે લાખ તપાવી ગરમ કરવી અને બાણ વાંકો વાળવો એના પાછળ એક મોટી કાર્ય-કારણ પરંપરા કામ કરી રહી છે. तृष्णाशील व्यक्ति का जीवन सदैव भौतिक प्रवृत्तियों में बीतता है, प्रातःसूर्य की प्रथम किरण के साथ उसकी निद्रा खुलती है और वह अपने बनाव सजाव में जुट जाता है। खाध्याय और ध्यान के महत्वपूर्ण समय का उपयोग वह भृगार प्रसाधनों में रामार करता है। कोई अपने समय का उपयोग दैनिक पत्र पड़ने में लगाता है, तो कोई बुट पालिस में तो कोई नेत्रीजन में सुंदर समय को बरबाद करता है। बालों की सजावट और स्नो पाउडर में घंटों लगा देनेवालों के पास प्रार्थना के लिये पाच मिनिट का समय नहीं मिलता। आंख का अंजन गौन्दर्य वृद्धि के लिये है। तो ब्रश लेप भी शारीरिक सुषमावृद्धि के लिये है, व्रण लेप का एक अर्थ घाव पर लेप करना है, वह स्वास्थ्य के लिये अभिप्रेत है, किन्तु यहां उसकी एक दूसरी दान भी निकलती है, चेचक आदि के द्वारा मुंह पर व्रणचिल-मुंहासे हो जाते हैं, उन्हें हटाने के लिये जो लेप किया जाता है वह पतृणा से प्रेरित है। जतुलास का तपाना आजीविका निमित्तक है। किन्तु वह भी कभी कभी लोभ प्रेरित होता है। वाण को झुकाने की क्रिया भी किसी कारण से प्रेरित होकर की जाती है। उद्देश्य बिना की क्रिया पागलों की होती है। बुद्धिमान एक कदम भी जिना उद्देश्य के इधर से उधर नहीं रखता। किन्नु हर व्यक्ति के उद्देश्य विभिन्न होते है । एक ज्ञानी की समस्त क्रियाएं आत्म-साधना को लेकर होती हैं, जबकि रमी व्यक्ति की क्रियाएं अपनी रागपरिणति की पोषक होती हैं। १ वित्तण ताण न लभ पमत्ते।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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