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________________ २८१ पैंतालीसयाँ अध्ययन आहारादि तु जीवाण लोए जीवाण दिजती! पाणसंधारणट्ठाय दुक्खणिग्गहणा तहा ॥ १७ ॥ अर्थः-लोक में प्राणियों के द्वारा दूसरे जीवों को आहारादि इसलिए दिये जाते हैं ताकि वे प्राण रक्षा कर सकें और दुःस्त्र का निग्रह कर सकें। गुजराती भाषांतर: આ દુનિયામાં જીવ વડે બીજી જીવોને અહિાર વિગેરે એ જ ઈરાદાથી અપાય છે કે તેઓના પ્રાણોનું સંરક્ષણ થઈ શકે અને દુઃખને પ્રતીકાર કરી શકે. मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जीता है। समाज से कुछ लेता है तो यह आवश्यक हो वह कुछ दे भी । जो केवल लेना ही जानता है वह राक्षस है, भले ही वह किसी भी कुल में पैदा हुआ हो और जो देना ही जानता है किन्तु मानद दे और ले के बीच पलता है। वह कुछ देता है तो कुछ लेता भी है। यह दे और ले की क्रिया श्वासप्रक्रिया है। हम श्वास के रूप में अच्छी हवा लेते है तो बदले में हवा छोड़ना न चाहे तो कब तक जीएमा हम दूसरे का सहयोग लेते हैं तो सहयोग देना भी आवश्यक है ।। __ मानव का पहला कर्तव्य है वह पीड़ित का सेवा के लिये हाथ आगे बढ़ाये । दूसरे को गिरते हुए देखकर जो हंसता है तो वह रोम के पास बादशाह का वंशज है जो रोम को जलजा देख रहा था और बांसरी बजाए जारहा था। यदि खडे रहे ही तो मिट्टी के ढेले हैं और घेरकर खडे हो जाते है। पशु है, क्योंकि गाय भी घेरकर खडी हो जाती है, किन्तु जब हम गिरते हुए को थामने के लिये द्वाय आगे बढ़ाते हैं तभी मानब हैं। पाचकमुख्य उमास्वाति भी लिखते हैं। एक ठूसरे के लिए सहायक होना जीवों का लक्षण है। सत्येण बहिणा वा वि खते दहे व वेदणा । सर देहे जहा होति एवं सम्वेसि देहिणं ॥ १८॥ अर्थ:--शस्त्र और अग्नि से जैसे अग्ने देह में आघात, दाह, वेदना होती है, धैसे ही सभी देहधारियों को भी होती है। गुजराती भाषांतर: જેમ શસ્ત્રોથી, આગ અને આઘાતથી બળતરો કે દુખાવા જેવા દરદો શરીરમાં થાય છે તેવી જ રીતે હરએક શરીરધારી (જીવ) ને થાય છે. विश्व की समस्त आत्माएं एक हैं, क्योंकि सबकी सुख और दुःस्त्र की अनुभूति एक जैसी है। मेरी अंगुलि में कोई सुई चुभता है तो पीडा होती है तो दूसरे की देह में सुई चुमेगी तो पीडा हुए बिना न रहेगी। इसीलिये आगमवाणी बोलती है-सभी आत्माएं एक है । सभी आत्माएं सुस्त्र चाहती हैं और दुःख से दूर रहना चाहती है से ही विश्व की अनंत अनंत आत्माएं शान्ति चाहती हैं । इंग्लिश विचारक भी बोलता है-All blood is of one colour-सभी प्राणी एक है। पाणी य पाणिधातं च पाणिणं च पिया दया। सध्यमेत विजापिता पाणिघातं विवज्जए ॥ १९॥ अर्थ:--प्राणियों को प्राणिघात अप्रिय है और समस्त प्राणियों को दया प्रिय है । इस सबको समझकर साधक प्राणिघात का परित्याग करे। गुजराती भाषान्तर :-- જીવોને જીવોની હિંસા ગમતી નથી અને બધા જીવોને (ભૂત) દયા કુદરતી રીતે ગમે છે. આ વસ્તુ ધ્યાનમાં રાખી સાધકે વની હિંસાનો ત્યાગ કર જોઈએ, समस्त प्राणि अहिंसा आत्मा का अपना स्वभाव है। अतः वह सभी को प्रिय है। पशु के सामने एक व्यकि घास ले जाता है और दुसरा छुरा लेकर खडा है। उसे पूछा जाय कि तुझे कौन प्रिय है। यदि कुदरत ने उसकी बोलने की शक्ति दी होती तो वह कह उठता मुझे घास लिये खडा व्यक्ति प्रिय है। फिर भी उसकी जीम न बोले, किन्तु उसकी खे तो बोल १. परस्परो ग्रहो जीवानाम् -तत्वार्धसूत्र अ. पू मू, २१ २. 'अहिंसा गूतानां जगांत विदित ब्रह्म परमं न सा लत्यारंभोऽस्यपुरपि नं यत्रामविधी ३६
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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