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इसि-भासिया अतिर्षि वात्मजागृति की प्रेरणा देते हुए हैं :- जागृत धारमा की पांचों इन्द्रियां सुन रहती है वे अल्प दुःख की कारण होती है। प्रज्ञाशील साधक उनकी अल्प विकृति भी दूर करे।
टीकाः- जानतोऽप्रमत्तस्य मुनेरिन्द्रियाणि पंचसुसान्यामदुःखस्य कारणानि हेतकः कारणाद् वा दुःखस्योत्पायमानस्वात् तस्यैव पिनाशाय संततं सदा प्राझो वर्तेत । गतार्थः ।
प्रोफेसर शुमिंग लिखते हैं-३७ अध्ययन की भांति इस अध्ययन का मुद्दालेख मी पृथक है। वह इस दुनिया का वर्णन करता है। भौतिक सुख दुःख आनंद प्रमोद को दूर करने की प्रेरणा देते हैं। प्रस्तुत अध्ययन बौद्ध ऋषि के मुख से कहलाया गया है। दूसरे श्लोक द्वारा हम इस तथ्य को समझ सकते हैं। सूयगडांग सूत्र के १, ३, ६ गाथाओं से साम्य रखता है। जो जेकोची के द्वारा शीलांक की टीका से हम जान सकते हैं और इसे बुद्धि के सामने रखा गया है। चतुर्थ श्लोक में आया हुआ बुद्ध शब्द जैन अर्थपरक है।
वाहिक्खयाय दुक्खं वा सुहं या णाणदेलिय।
मोहक्खयाय एमेव सुहं वा जइ वा सुहं ॥७॥ अर्थ :-- व्याधि के क्षय के लिये दुःखरूप या सुखरूप जो औषधियां होती हैं (वैद्य के) ज्ञान से चे उपविष्ट है । इसी प्रकार मोह के क्षय के लिये जो भी सुखरूप साधना है वह गुरु से उपदिष्ट है। गुजराती भाषांतर:
દરદ મટાડવા માટે દુઃખરૂપ કે સુખરૂપ જે જડીબુટ્ટી છે તે (વૈદ્યરાજે પોતાના જ્ઞાનથી જ ભલામણ કરેલી છે. આ જ રીતથી મેહનો નાશ કરવા માટે પણ જે કંઈપણ દુઃખરૂપી કે સુખરૂપી સાધના છે તે ગુરુના ઉપદેશનું ફળ છે.
शरीर में व्याधि है तो मनुष्य उसे दूर करने के लिए वैद्य की शरण लेता है फिर वह जो भी कडवी या मीठी औषधी देता है उसे पी जाता है। इसी प्रकार मोड़ के क्षय के लिये हमें सद्गुरु के निकट जाना ने जो मी मव या कठोर साधना बताएं नसे अपनाना होगा। मोह स्वयं एक व्याधि है। उसके अपने तक ही सीमित रहती है। "दूसरे एक हजार भर जाएंगे तो भी उसका रोम नहीं हिलेगा, किन्तु उसके अपने एक पर भी जहां प्रहार हुआ तो वह तिलमिला जायेगा। जज अपनी कलम से दूसरे के लिये फांसी का हुक्रम लिख देता है, किन्तु अब उसी का पुत्र हत्या के अपराध में फसता है और अपराध सिद्ध हो जाता है और उसके लिये फांसी का आदेश लिखते उसकी कलम कांप जाती है। उस सौसो दलीलें याद आती हैं। वह बोल उठता है यह कैसा भी अमाननीय कानून है उसने आवेश में दसरे के प्राण लिये कानन जान बूझकर उसके प्राण ले रहा है। एक में पागलपन था दूसरे के पास ज्ञान का दावा है। आखिर काम तो दोनों एक ही कर रहे है। किन्तु यहां जो भी दलीलें याद आ रही है. यहां ज्ञान के शिखंडी बनकर पीछे से मोह बाण छोड़ रहा है।
___ जब दूसरे मर रहे थे तब एक भी दलील याद नहीं आई । अब जो मानवता के प्रति हमदर्दी दिखाई जा रही है वह मानवता से नहीं; मोह से प्रेरित है। जहां मोह है वहाँ दुःख मैठा है।
टीका :- व्याधिक्षयाय दुःखं वा सुत्रं यद् यदौषधं भवति तद् बैग्रस्य शानेन देशितं दिष्टं, एवमेव मोइशयाय दुख सुखं वा मोय उपायो दिष्ट गुरुणा । गतार्थः ।
ण बुषवं ण सुखं वा वि जहाहेतु तिगिच्छिति। तिमिच्छरसु जुत्तस्स दुपत्रं वा अइ वा सुहं ॥८॥ मोहमखए उ जुत्तस्स दुक्खं वा जइ था सुदं ।
मोहपखए जहाहेउन दुखं न वि वा सुहं ॥ ९॥ अर्थः—जिस हेतु को लेकर चिकित्सा की जाती है वहाँ सुख भी नहीं है और दुःख भी नहीं है। चिकित्सा में युवा व्यक्ति (रोमी) को सुख और दुःख हो सकता है।
.इस प्रकार मो क्षय में युक्त (प्रवृत्त) व्यक्ति को सुख और दुःख हो सकते है किन्तु मोह क्षयका हेतु सुख और दुःख नहीं है।
दुकाव हय जस्सन होई मोहो । - उसरा अ०३२