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"इसिभासियाई" सूत्रपरिचय अशुद्धियों की बाढ़ है । इसीलिये अनुवाद की दुरूहता भी बढ़ गई है । जैसे कि अध्ययन ४ गा० १७ के अन्तिम चरण में "जेवा उटीम णाणिणों" पद आता है । उटीम का कोई अर्थ नहीं है । अन्य प्रतियों में उटीम के स्थान पर 'उसम' शब्द है जोकि ठीक अर्थ देता है।
फिर भी अध्ययन, गाथा संख्या आदि सभी व्यवस्थित है। प्रस्तुत प्रति का स्तर प्राकृत व्याकरण के अधिक निकट है। 'अमि' 'पुष्प' 'परिग्रह' आदि को 'अग्गि' 'पुप्फ 'परिग्गह' के रूप में रखा गया है जोकि प्राकृत व्याकरण से सहमत है। अन्य प्रतियों में विचित्र रूप मिलता है | अग्नि को 'अग्नि' लिखते हैं पुष्प का 'पुष्फ' रूप मिलता है । प्रस्तुत प्रति में पाठान्तर भी शब्द के साथ ही दे रखा है। किन्तु पाठान्तर प्रायः अन्य चार प्रतियों में देखा नहीं जाता है।
. अन्त में संग्रहणी गाथाएं मिलती हैं जिनमें ४५ ऋषियों के नाम और त्रिषय क्रम भी है । उपसंहार में ऋषिभाषित का प्रामाण्य और देव नारद महंतर्षि का परिचय भी दिया गया है। जर्मन प्रति - प्रस्तुत प्रति जर्मन के गोटिजिनो से प्रकाशित हुई है। इसके दो खंड है । प्रथम भाग का सम्पादन डा. वाल्टर शुनिंग के हाथों से हुआ है । उसमें सर्व प्रथम जर्मनभाषा में इसिमासियाई सूत्र की भूमिका दी गई है। जिसमें बताया गया है कि यह सत्र कहां किस रूप में प्राप्त होता है किन किन आगमों में इसका उल्लेख आता है। उसमें डा. शुबिग् ऋषिमाषित सूत्र को बाइबल के उप विभाग गॉस्पेल से उपमित करते हैं। उसके बाद वे प्रस्तुत सूत्र के महत्व पूर्ण प्रश्नों पर विचार करते हैं । दस पृष्ठों की विस्तृत भूमिका में विभिन्न प्रक्षों की चर्चा की गई है ।
पश्चात् इसिमासियाई सूत्र का शुद्ध मूलपाठ दिया गया है । फुटनोट में पाठान्तर भी दिये गये हैं । शुद्ध पाठ के बाद प्रत्येक अध्ययन पर टिप्पणी दी गई है।
द्वितीय खंड में संक्षिप्त भूमिका है, बाद में ऋषिभाषित की संक्षिप्त टीका भी दी गई है । द्वितीय खंड डॉ. वाल्ड स्मीडट के द्वारा सम्पादित है, संस्कृत टीका रोमन लिपि में है।