________________
पैंतीसवां अध्ययन
२२१
शस्त्र हिंसा का बहुत बड़ा साधन है । कोध आया और पास में शस्त्र है तो वह शीघ्न हिंसा के लिये तैयार हो जायगा। पर यदि आवेश के क्षणों में शस्त्र पास में नहीं है जो वह उस समय प्राणघात से बच जाएगा । संभव है कुछ देर बाद उसके आवेश का तुफान ही शान्त हो जाए।
शल्य वह अन्तःशस्त्र है। जो भीतर ही प्रहार करता है। विष नी कोध को उत्तेजना देनेवाला है। आवेश में बहत से अविवेकी जन आत्मघात की सोच लेते हैं और विष का प्रयोग करते हैं अथवा उराका उपयोग दूसरे की हत्या में करते हैं।
इसी प्रकार यंत्र, मद्य, सर्ग और दुर्वचन कथाम के प्रमुख निमित हैं । आत्मशान्ति के गवेषक को इनसे बचते रहना चाहिये।
आतं परं च जाणेजा सबभावेण सम्बधा।
आयटुं च परटुं च पियं जाणे तहेव य ॥ १२ ॥ अर्थ:-साधक 'स्व' और 'पर' का सर्वभाव से सर्वथा परिज्ञान करे, साथ ही आत्मार्थ और पदार्थ को भी जाने । गुजराती भाषान्तर:--
સાધકે “સ્વ” અને “પરનું સર્વભાવે (સારી રીત) જ્ઞાન કરી લેવું જોઈએ અને સાથે સાથે આત્માર્થ તેમજ પદાર્થનું જ્ઞાન પણ કરી ફેવું જોઈએ.
कषायों से उपरत होने के लिये साधक ख और पर का भेद विज्ञान प्राप्त करे । जब तक यह भेदविज्ञान नहीं आयेगा तब तक संषों का अन्त नहीं हो सकता । क्योंकि पर में स्त्र की बुद्धि ही संघर्षों की जड़ है। साथ ही स्वहित और परहित का भी विवेक आवश्यक है । केवल खहित को आगे रखकर चलनेवाला दूसरों के हितों को कुचलता है और इस प्रकार वह परोक्ष रूप से कषाय की ज्वाला भडकाने काही काम करता है। दूसरे के अधिकार छीनकर उनकी संपत्ति दबाकर शान्ति की बात करना शान्ति का उपहास है।
सप गेहे पलित्तम्मि किंधावसि परातक?।
सयं गेहं णिरित्ताणं ततो गच्छे परातकं ॥ २३ ।। अर्थ:-जब अपना घर जल रहा है फिर दूसरे के घर की ओर क्यों हो रहे हो स्वयं के घर का निराकरण करने के बाद दूसरे की ओर जाओ। गुजराती भाषान्तर:
જ્યારે પોતાનું જ મકાન સળગવા માંડ્યું છે ત્યારે તમે બીજના ઘેર તરફ કેમ દોડો છો ? પોતાના ઘરનું નિરાકરણ (આગથી સંરક્ષણ કર્યા પછી જ બીના ઘેર તરફ આવો.
कषायोत्पत्ति के हेतुओं में एक प्रमुख हेतु परनिन्दा का है। दूसरे के बालोचना बहुत सस्ती होती है, क्योंकि हमारे आंख की काली कीकी दूसरों की कालिमा बहुत जल्दी देख लेती है। मानव की आंखें देखती है उस किन्तु एक क्षण भी मुड़कर अपनी ओर नहीं देखता कि मेरे पैरों के नीचे भी आग जल रही है। भारत के भक्त कवि सूरदास बोलते हैं
पगतर जरत न जानत मूरख ।
पर वर जाय बनाये। मर्चमा इन लोगन को भाये। दूसरे की आग बुझाने के लिये आप दौर पडे है, आपकी इस परोपकारिता का स्वागत है। आपके दिल में दूसरों के उद्धवार के लिये बहुत बड़ी बेचैनी है, किन्तु जरा रुकिये, आपने अपना उद्धार तो कर लिया है न! आपका अपना घर तो कहीं आग की लपटों में नहीं है ? पहले अपने घर का फैसला कर लें फिर दूसरे के घर की ओर कदम बढ़ाएं।
टीका:-स्वस्मिन् गृहे प्रदीप्ते किं परं गृह धावसि खमेव गृहं निरिस्य ततो गच्छेत् परं गृहम् ।
एक इंग्लिस विचारक बोलता है-Don't couplain about the snow on your neighbour's Yoof when your own doorstep is unclearn. जब आपके अपने द्वार की सीदियो मैली हैं तो अपने पड़ोसी के छत पर पड़ी हुई गंदगी का इलाहना मत दीजिये।