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________________ " पैंतीसवां अध्ययन टीका - तेषां च कषायाणामहं एरियात हेतोर कुप्यममाद्यन्न गुलुभ्यं स्त्रिगुप्त स्त्रिदंड-विरतो, निःशल्पोऽगारवः स्त्री-भक्त-देश-राज विशेषितत् चतुर्विकथा विवर्जितः पंचसमितः पंचेन्द्रियसंवृतः शरीरसंधारणार्थं योगसंधानार्थं नवदोषकोटिपरिशुद्धं दशदोष - विप्रमुक्तं, उद्गमोत्पादनशेषशुद्धं तत्र तथेतरेषु क्रुदेषु परावं कृतं निष्ठितं, बिगतांगार, विगतसरसाधारधनदद् दातृवर्णनं, विगतधूमं जिरसाहारकृपणदातृ निम्न वर्जितं शस्वाती शस्त्रपरिणतं पिंडे यावधि चैषा भावयामीत्यर्षिणा भाषितं । गतार्थः । २१७ विशेष विगत्तागारं और विगत धूम के साथ कुछ विशेषण और जोड़े हैं। सरमा आधार और धनवान दाता का वर्जन करना चाहिये। क्योंकि धन का पूजारी गुण पूजा को महत्व नहीं देता और वह अपने यहां आगंतुक संत को भी रसलोलुप भिक्षुक ही समझता है । कृपण के यहां भी मुनि भिक्षा के लिये न जाए, क्योंकि जिसका दिल संकुचित है उसके पास भी कुछ नहीं मिल सकता | कृपण का दूसरा अर्थ गरीब भी होता है। दीन-दुःखियों के उद्देश्य से बनाये गये भोजन को गुनि ग्रहण न करे। साथ ही मुनि निन्दित गृह में भी प्रवेश न करे । अण्णा विप्पमूढप्पा पच्चुप्पण्णाभिधारण | Pahli किया महायाणं अप्पा विधह अप्यकं ॥ १ ॥ अर्थ :-- अज्ञान से घिरा हुआ महात्मा केवल वर्तमान को ही देखता है क्रोध को महाबाण बनाकर उसके द्वारा अपने आपको बांध डालता है । गुजराती भाषान्तर : અજ્ઞાનથી ઘેરાયેલો મૂઢ માનવ કેવલ ચાલુ હાલત તરફ જ ધ્યાન આપે છે. ગુસ્સાને મહાબાજી (શસ્ત્ર) બનાવી તેનાથી જ પોતે ઘાયલ અની જાય છે. अज्ञानशील आत्मा की दृष्टि केवल वर्तमान तक ही सीमित रहती है । इसीलिये उसके वर्तमान तुख में जरा भी कमी होती है, या उसके स्वार्थ को ठेस लगती है तो उसका को उबल पड़ता है। कोध मानव का विवेक दीपक बुझा देता है। एक इंग्लिश विचारक ने कहा है : An angry man opens his wonth and shuts his eyes. क्रोधी मनुष्य आंखें मूंद लेता है और मुंह खोल देता है । वह यह नहीं सोचता कि मेरे इन शब्दों का परिणाम क्या आयेगा | कोध के प्रारंभ में मूर्खता है और उसके अन्त में पश्चाताप रहता है। कोष जब अलग दरवाजे से प्रवेश करता है तो विवेक पीछे की ओर से भाग खड़ा होता है । क्रोधी मानव कोष के बाण से स्वयं अपने आपको बींध लेता है। हजारों की संख्या में होनेवाली आत्महत्याएं इसी की साक्षी है। दूसरे को जलाने के लिए जो आग फेंकने की चेष्टा करते हैं, उस आग से दूसरा जलेगा या नहीं यह दूर की बात है किन्तु आग अपने फेंकने वाले के हाथ को जरूर जलाती है । क्रोध पर विजय पाने के लिये क्रोध विजेताओं को स्मृतिपथ में लाना चाहिये। आग बुझाने के लिये फायर ब्रिगेड को बुलाया जाता है तो कोष के उपशमन के लिये क्षमा के देवता गजसुकुमाल को याद करना चाहिये। उनका उज्वल इतिहास क्षमा की पुड़ियां दे जाता है। साथ ही क्रोध के उपशमन के लिये क्रोध आने बाद विचार करना चाहिये 1 को क्यों आया है उसमें गलती किसकी थी ? यदि मेरी गलती थी और उसने बताई तो फिर कोध की आवश्यकता क्या थी ? यदि गलती दूसरे की थी फिर भी उसे गुस्सा आयगा तो मुझे शान्त रहना था । मण्णे बाणेण विद्धे तु भवमेकं विणिज्जति । कोषाणेण विद्धे तु गिती भवसंतति ॥ २ ॥ अर्थ :- बाप से बीधे जाने पर एक भव विधड़ता है। कोष बाण के प्रविष्ट होने पर भव-परंपर ही बिगड़ जाती हैं ऐसा मैं मानता हूं। गुजराती भाषान्तर : મીંજા ખાણુથી ત્રાયલ થયા પછી એકજ ભવ બગડે છે. ગુસ્સાનો બાણ વાગ્યા પછી ભવપરંપર' (અનેક ભવ) लगाडे छे, खेभ हुं भानुं धुं. २८
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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