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इसि-भालियाई
साथ छोड़ देगी । इसीलिये एक विचारक ने कहा है-शरीर की सजावट करनेवाले पर मृत्यु मुस्कराती है । यौवन के अणों में इठलाने पर जरा इंसती है । धन को पृथ्वी में गाड़नेवाले पर पृथ्वी इंसती है। यह एक मिथ्या धारणा है हि संपति के द्वारा हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इंग्लिश विचारक बोलता है-Money will not buy everything पैसा प्रत्येक गोल नहीं खरीद सका। उसके द्वारा फाटन गेन खरीद सकते हैं, पर लेखनकला नहीं मिल सकती। पसे से रोटी खरीदी जा सकती है, लेकिन भूख नहीं मिल सकती । पैसा आपको मा दे सकता है, लेकिन आंसदेने में असमर्थ है।
हो, तो अतिर्षि उसी संपत्ति की तुझ्छता बता रहे हैं कि वह संपत्ति इलते सूर्य की छाया सी सीमिन और क्षणिक है। संपत्ति के अर्जन करनेवाले की काल यही संदेश देता है । अथवा यदि संपत्ति का संग्राहक अपनी संपूर्ण संपत्ति भी आपको दे देता है तब भी वह आपको एक नाशवान वस्तु ही दे रहा है। दुनियां की नजरों में वह महान दानी है, किन्तु तत्वष्टा कहता है तू ने ही क्या एक सड़ी गली चीज ही न? कोई शाश्वत वस्तु तो तू. ने न दी। दूमरी और एक संत विचार की किरण देता है वह विश्व को एक महान देन दे जाता है । महर्षियों का चिन्लग और मनन विश्व को नई दिशा देता है और वह विश्व की अमूल्यतम संपत्ति होता है। किसी को संपति देने के बजाय उसे विचारों का दान देना उसके लिये सर्वश्रेष्ठ दान है। टीका:-क्षर्यि प्रमाण वाता च दयाद् यो धनमर्जयति । सबर्मवाक्यदान त्वक्षयममृतं च मतं भवति ॥ गतार्थः ।
पुणं तित्थं उवागम्म ऐया भोजा हितं फलं ।
सद्धम्मवारिदाणेणं खिप्पं सुज्झति माणसं ॥१०॥ . अर्थ:-जिस पुण्य तीर्थ को पावर परलोक में जिस फल को तुम मोगोगे उरा फल की प्रसव भूमि हृदय सद्धर्म के पानी देने से जल्दी शुद्ध होता है। गुजराती भाषान्तर:
જે પુણ્યભૂમિને મેળવ્યા પછી પરલોકમાં જે ફળ તમે ભગશો તે ફળની પ્રસવભૂમિરૂપી શુદ્ધ હૃદયને સારા ધર્મનું પાણી આપવાથી તે તરત શુદ્ધ થાય છે,
मानव पुण्य के भी फल खाना चाहता है। किन्तु जब तक उसकी जड़ों को सिंचन न मिले तब तक पुष्पलता फलवती नहीं हो सकती । हृदय व भूमि है जहां कि पुण्य की लता फैलती रहती है । सद्भग रूप जल देने से हृदयशुद्धि होती है और पुण्यस्ता की जड़ें मजबूत होती है। साधना के क्षेत्र में आँख की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आंख के अभार में भी साधक साधना कर सकता है । साधना के पथ में जीन की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गूक व्यक्ति गी साधना कर सकता है। वहां पैर की भी आवश्यकता नहीं है और हाथ भी आवश्यक नहीं है। क्योंकि पंगु और टूले व्यक्ति साधना कर सकते हैं । किन्तु वदयकता है छोटे शुद्ध हृदय की । हृदय की पवित्रता समस्त पवित्रताओं में श्रेष्ठ है । वेदव्यास बोलते हैं
'तार्थानां हृदयं तीर्थ शुबीनां हृदय शुचि' तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ हृद्य है और पवित्र वस्तुओं में पवित्रतम हृदय ही है । एक इंग्लिश की विचारक भी बोलता है -
If a good face is a letter of recommendation, I goal heart is uleiter of credit.
__ यदि सुन्दर मुख सिफारिश पत्र है तो सुन्दर हृदय विश्वास-पत्र । पवित्र हृदय में धर्म के फूल खिलते है। भगवान महावीर कहते हैं सरल आत्मा ही शुद्ध होता है और धर्मशुद्ध हृदय में ही ठहरता है। ऐसा साधक परम शान्ति को उसी प्रकार पाता है जैसे कि तसिक अनि तेजस्विता को। टीका :--पुण्यं तीर्थमुपागम्य प्रेत्य मुंज्यादितं फलं । सद्धर्मयारिदानेन शिमं तु शुद्धति मनः ।
सम्भाववकविचेसं सावजारंभकारकं ।
दुम्मित्तं तं विज्ञाणेजा उभयो लोगविणासणं ॥ ११॥ १ सोही उज्जुय भूयल्स धम्मो सुद्धस्स चितुर । निवागं परने जाइ धमसितेज पात्र । उत्सरा. अ. ४ २ विसेसं.