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"इसि भासियाई" सूत्र परिचय
श्रमण संस्कृति की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
भारतीय संस्कृति अपने-आपमें एक विराट् समन्वय है । भारत जैसे विराट् देश में जहां कि करोड़ों मानव बसते हैं, सभी का एक विचार, एक आचार असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है, किन्तु जहां आचार और विचार की रेखाओं में विविधता लक्षित होती है, वहां विविधता में भी एकरूपता है । वह विविधता एक फुलवारी की विविधता है, जहां नानाविध पेड़ पौधे अपनी सौन्दर्य - सुषमा में निर्वाध अभिवृद्धि कर रहे हैं। यदि एक ही किस्म के पेड़ पौधे होंगे तो विपिन की बहु मनोहरता लक्षित न होगी जो विविधता में होती है। इसी अर्थ में हम भारतीय दर्शनों को एक सुजा हुआ गुलदस्ता कहेंगे, जहां हर एक दर्शन - पुष्प अपनी विचार-परम्परा का प्रतीक है। विविधता बुरी नहीं, बुरी ची तो विवि के दूसरे के स्थान को हथियाने की चेष्टा करना, एक दूसरे को झूटलाना। अपने विचारों को ही सच्चा समझने के आग्रह के कारण, जब व्यक्ति दूसरे के विचार - वैभव को सह नहीं सकता और उसकी वैचारिक स्वतंत्रता का गला घोंटना चाहता है, तब उसमें जहरीली गैस घूस आती है, जो खाने व पराये सबको नए कर डालती हैं ! |
साम्प्रदायिकता की प्राचीर में जिनके मानस कैद रहते हैं, और बाहर की हवा लगते ही जिन की श्रद्धा लज्जावती बन जाती हैं, उनके लिये वह विविध पुष्पों से सजा हुआ गुलदस्ता महज एक जलते हुए अंगारे जैसा है। जिनकी विचारधारा ने सम्प्रदाय मोह के कारागृह से छुट्टी पा ली है सोचने और समझने के लिये दिमाग की खिड़कियां बंद नहीं हैं। वे जहां भी पहुंचते हैं जीवनमधु पा ही लेते हैं । विचार मधुमक्षिका जहां भी पहुंचती है शहद की बूदें ग्रहण करती है । इसीलिये अमृत के आगार करुणा के स्रोत भ. महावीर कहते हैं“जो मेधावी विचारशील ज्ञान की रोशनी लिये आगे बढ़ता है, उसके लिए विश्व का अणु-अणु श्रेय की ओर बढ़ने की प्रेरणा देने वाला है, उसके लिये मिथ्याचा भी सम्यक शास्त्र है। वह जहां भी जाएगा अमृत की दृष्टि लेकर जाएगा और अमृत ही लेकर आएगा । और जो जहर की शोध करने चला उसे अमृत में भी हालाहल की बूंदें दिखलाई देंगी। इतना ही नहीं, जीवनदायी अमृत भी जहर की लहर देने लगेगा | हमें अमृत का शोधक बनना है, उसी अमृत की खोज भारतीय सन्तों ने की है ।
भारत को ऋषियों की भूभि होने का गौरव प्राप्त है । की हैं दर्शन के क्षेत्र में उसका अपना नया स्थान बन गया है। में पृथक्-पृथक् विचार व्यक्त किये हैं। उन्होंने कहा गति और प्रगति का नाम विविधताओं - विचित्रताओं से भरा यह विश्व क्या है ?
जीवन और जगत् के विषय में जिसने जो भी खोज विभिन्न दर्शनकारों ने जीवन और जगत् के विषय जीवन है पर अनन्त अनन्त
मैं कौन हूं, इस विराट ब्रह्मांड में मेरा स्थान क्या है ? इस गति और प्रगति का लक्ष्य क्या है ? ये छोटी आँखें जो कुछ देख रही है यही सब कुछ है । या इससे भी परे कोई तव है ? इस विराट विश्व का नियंत्रण सूत्र किन सशक्त हाथों में हैं ।
मानव-मानस में घूमड़ंत इन प्रश्नों का एक ने उत्तर दिया तू और कोई नहीं, इस विराट विश्व का एक शिलमिलाता सुन्दर बुलबुला है। तेरी यह मोहकता, तेरी यह कमनीयता इस महान प्रकृति की देन है। उसी के हाथों से तेरा निर्माण हुआ है । इसी असीम जलधि ने दो बूंद जल दे दिया और विशाल भूपिंड ने तेरा पुतला खडा कर दिया। वायु तुझे अहर्निश जीवन दे रही हैं, वनस्पति तेरा भोजन है, अनन्त आकाश तेरा आवास है, यही तेरे इस मिट्टी के जीवन की नपी-तुली परिभाषा हैं। कुछ क्षण तक हंस ले, खेल है, तमाम भोग्यपदार्थों का निर्माण तेरे लिये हुआ है, भोग, केवल भोग तेरे जीवन का साध्य है, अर्थ तो साधन है और आखिर में तुझे इसी मिट्टी में समा जाना है, इससे परे तेरा कोई अस्तित्व नहीं है । .