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प्रकृति
४८५
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ४७
प्रतिक ४८० २० प्रति ४८२ २५ तामज
सामस ४८३७ संक्षीप्त
संक्षिप्त १५-१६ परमात्मा से आकाशसे, परमात्मासे पाकाश,
भकाश से ४५२ श्रद्रत वही
वाली श्रेतकेतु श्वेतकेतु ४८५ २४ व्यप्त
व्याप्त ४८
निर्वाण निमोण जतना का जनता का वागणे वाष्णाय श्रेष्ठ-कनिष्ट श्रेष्ठ-कनिष्ठ
भयरहोंने भमणोंने ४६५ गणसत्र
गणतंत्र ४६२
नम्र श्रवणं अगाछतम्, मम श्रवणं आगच्छतम् ४६३
वेदाध्यन वेदाध्ययन सास
झान ४६४
पुनरशीयन पुनरुज्जीवन ४६४१५ करने
करके न प्रकृतिवादको प्रतिवादको ४६६
शुष्क संख्याय संख्य सव्यापसव्य ।
प्रष्ट