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________________ (P) ही रज व वीर्य, मनुष्य आदि उत्पन्न हुये थे और यहां रज वीर्यं से ही जीवों की उत्पत्ति बनाई गई हैं। तथा रजवीर्य भी उन्हीं मछली मैंठक आदि से उत्पन्न हुये हे ईश्वरसे नहीं । अतः इनसे आपके मन की पुष्टि होने के बजाय उसका खण्डन ही होता है। आपने अपने गुरुकुल के परीक्षण का उदाहरण देकर तो कमाल किया हैं। श्रीमान जी आपको तो कोई ऐसा उदाहरण देना चाहिये था जिससे यह होता कि बिना ही बीज के वृक्ष बन गये तथा निरजवीर्य के मनुष्य आदि उत्पन्न हो गये तब तो आपके मत की पुष्टि होती यहां तो कीड़ा पहले ही विद्यमान हैं सिर्फ उसके रूप व आकार परिवर्तन हुआ है। यह तो प्रत्येक समय प्रत्येक वस्तु में होता है । चवं अन्दर जो कीडा होता है उसकी तितली वन जाती है। इसी प्रकार गौरव आदि में बिच्छू उत्पन्न हो जाते है। ये सब आपके मत के बाधक प्रमाण हैं 1 वर्तमान विद्वान ने भी सिद्ध कर दिया है कि बिना भए श्राविके कीट यादिकी उत्पत्ति असम्भव है। वर्षा ऋतु घास आदि अथवा सूक्ष्म से सूक्ष्म जन्तु भी अपने कारण या अण्डोंस ही उत्पन्न होते है । पहले के लोगों का रूप ल था कि मेंढक यदि पानी आदिसे एकाएक स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं. परन्तु यह सिद्धान्त परीक्षासे गलत सिद्ध हो चुका है। यही अवस्था सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से देखे जाने वाले कीटाणुओं की है। वैज्ञानिकोंका कथन है कि हम स्वयं जननका एक भी उदाहरण नहीं जानते । और अभीतक हमें एक भी ऐसा पुराने जीवित या मृत जीवका नमूना नहीं मालूम जिसके विषय में हम यह समझतें कि वह स्वयं पैदा हुआ होगा यहां पर हमें फिर अपनी लाचारीको मानना पड़ता है कि हम यह नहीं बता सकते
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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