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________________ समीक्षा आत्मा नान स्वरूप है, ज्ञान और आत्मा कोई पृथक पृथक पदार्थ नहीं हैं । अतः ज्ञान को नैमित्तिक कहना बड़ी भूल है । अग्नि में गरमी किसी लिमित्त से नहीं पाती है. क्यों कि गरमी अग्नि का स्वभाव है। इसी प्रकार श्राभा में शान भी नैमित्तिक नहीं आता है। निमित्त से तो अज्ञान आ सकता है। आपने स्वयं इसी पुस्तक में शिव संकल्प सूत्र के मन्त्र लिखे हैं जिनमें अपने लिखा है कि-"जो ( मन ) ज्ञान ( चेतनः) चिन्तन शक्ति और धैर्य से युक्त है, और जो प्रजाओं में अमृत और ज्योति है।' आदि इसमें आपने स्वयं मन को भी ज्ञान युक्त माना है, 1 पुनः श्रात्मा को तो बात ही क्या है। अतः आत्मा को किसी निमित्तसे ज्ञान प्राप्त नहीं होता अपितु ज्ञान उसका स्वभाव ही है। इसका विशेष वर्णन हम 'नान और ईश्वर' प्रकरण में करेंगे। आगे श्राप का यह लिखना कि "महा प्रलय में जगत का अत्यन्ताभाव हो जाता है" यह आपके दार्शनिक शान का परिचय देता है क्यों कि "अत्यन्ताभाव' का लक्षण है जिसका कभी आदि और अन्त न हो "अनादिरनन्तोऽत्यन्ताभावः" क्यों कि यह अनादि अनन्त होता है । अतः आपने ये शब्द लिख कर जगत की रचना और प्रलय दोनों का प्रभाव सिद्ध कर दिया. पुनः अमैथुनी मुष्टि लिखना ही बात क्रीडा बत्त है। आगे आपने अमैथुनी मृष्टि का सिद्ध करने के लिये जो उदाहरण दिया है वे सब भी आपके सिद्धान्तों पर ही कुठाराघात करते हैं। घेद और विज्ञान में जगत रचना का तथा महा प्रलय का विरोध किया है यह पहले सिद्ध कर चुके हैं। तथा आपने अमैथुनी सृष्टि के लिये तीन उदाहरण दिये हैं . .१, मछली का (२) मैढकका (३) हेम वर्म कीटका, ये तान उदाहरण आप के मत का खण्डन करते हैं। क्यों कि आपके मतसे तो आदि में बिना
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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