SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 838
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पशुओं के बच्चे स्वभावतः तैरना जानते हैं परन्तु मनुष्य सीखे बिना नहीं तैर सकता । कनुष्यों को पशुओं से जो विशेषता प्राप्त है. उसका कारण यह है कि वह नैमित्तिक ज्ञान प्राप्त करने और प्राप्त करके उसकी वृद्धि करने की योग्यता रखता है। यही नैमि तिक ज्ञान, मनुध्यत्वकी भिती ऊंची किया करता है। इसी योग्यता काभग पशुको ना हों से रोक दिया करता होस्वामी भाविक माने जन्म सिद्ध होता है। परन्तु नाममित्तिक ज्ञान अभ्यों से प्राप्त किया जाता है। इस समय वह माता, पिताऔर अध्यापक वर्गसे प्राप्त किया जाता है। परन्तु जगतके प्रारम्भमें जिसे दुनिया की पहली नस्ल कहा जाता है. अमथुनी सृष्टि होने के कारण इसे कोई शिक्षा देकर नैमित्तिक ज्ञान प्राप्त करने वाला नहीं होता था। इस सम्बन्ध में श्रमधुनी सृष्टि का समझ लेना कदाचित उपयोगी होगा । अमैथुनी सृष्टि महा प्रलय में जगत का अत्यन्ताभाव हो जाता है। कार्य रूप में परिणत प्रकृति का चिन्ह बाकी नहीं रहता, न कोई लोंक बाकी रहता है। सूर्य चन्द्र आदि सभी लोकलोकान्तर कारण रूपी प्रकृति की गोद में शयन करने लगते हैं। ऋग्वेद में इसी सत् रज और तमंकी साम्यावस्था अथवा जगत के कारण रूप प्रकृति में लीन हो जाने के लिथे "तमासीत्तमसागूढमने" ( ऋग्वेद १० । १२६ । ३) कहा गया है। प्रचलित विज्ञानने भी इस महाप्रलयबादका समर्थन किया है । क्लाशियस ( The fcunder of the mechantcal theory of heat )ने तापको दो भागों में विभक्त किंधा है (५) ब्रह्मोगल में स्थित साप स्थिरताके साथ काम आता रहता है। (6) दूसरो काममें न आने वाला ताप अधिक से अधिक होजानेकी और प्रवृत्त रहेता है। इसकी प्रवृति भीतर की ओर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy