SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 837
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किसको मानव. मानुष, मनुष्य, आदि जातिका कारण माना जाये। क्या ये सच कल्पना मात्र हैं। अथवा कुछ अन्य रहस्य है इत्यादि अनेक तर्क वितर्क पैदा हो सकते हैं। इन सब पर गवेषणात्मक दृष्टिसे विचार करना चाहिये । यदि ऐतिहासिक विद्वान इस पर विचार करेंगे तो हमारा अनुभव है कि वे भारतीय प्राचीन इतिहासकी अनेक उल्झने सुलझा सकेंगे। इसके अलावा जो प्रलय कही जाती है. उसका खण्डन तो मीमांसाचार्य कुमारिलभट्टने अपने श्लोक वार्तिक ग्रन्थमें ही विस्तार पूर्वक दिया है । यथाः जिस प्रकार विज्ञानने यह सिद्ध कर दिया कि यह सम्पूर्ण जगत न कभी उत्पन्न हुआ और न इसका कभी नाश होगा। क्योंकि न तो सत्का कभी नाश होता है और न अभावसे कोई वस्तु ही बनती है। अतः इस संस्थप जगतका भी कभी नाश न होगा । तथा न कभी ऐसा समय था जब यह जगत सर्वथा अभाव रूप हो । इस विषयमें वैदिक प्रमाण हम पूर्व लिख चुके हैं। तथा उनको पुनः यहाँ लिखते हैं ताकि विषय क्रमशः आगे चल सके। अमैथुनी सृष्टि अनेक युक्ति और प्रमाणों से हम यह सिद्ध कर चुके हैं कि यह जगत नित्य है । जब यह सिद्ध हो चुका तो अब अमैथुनी सृष्टि का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । परन्तु फिर भी हम अमैथुनी इष्टि के विषय में जो युक्ति दी जाती है उनको लिख कर उन पर विचार करते हैं। इस विषय पर सबसे नवीनतर विचार आर्य समाज के प्रसिद्ध सन्यासी नारायण स्वामी ने अपनी पुस्तक वेद रहस्य में प्रकट किये हैं अतः हम उन्हीं को लिखते हैं । यथा. ''मनुष्यका स्वाभाविक छान पशुओंसे कम है। गाय बैल आदि
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy