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________________ बना लेता हूं। इसी प्रकार मुझ जैसे करोड़ों मनुष्य हैं जो मुझसे कुछ कम या कुछ अधिक कार्य कर रहे हैं। फिर इनके अतिरिक्त अरबों पशु पक्षी तथा कीट पतंग है, जो मेरे बराबर काम नहीं करते परन्तु अपनी अपनी सत्तायें अलग अलग भली भांति दिखाते हैं । इस प्रकार असख्या छोटी छोटी सत्तायें हमको मिलती हैं। परन्तु इन ससाओं और उस सत्ता में भेद है जिसको हम समस्त सृष्टि में शासन करता हुआ पात हैं। यह छोटी छोटी सत्तायें विशेष नियमाके भीतर ही अपना प्रभाव जमा सकती हैं। वस्तुतः उन ससाओं को उन नियमों का पालन करना पड़ता है। वह नियमोंकी शासक नहीं किन्तु अनुचर हैं। जैसे यदि मनुष्यचाहे कि मैं घर बनाऊं तो उसे उन नियमों को जाननेकी श्रावश्यकता है, जो घर बनाने में साधक होंगे। यदि थोड़ी सी भी चूक हुई तो घर न बन सकेगा। इन छोटी सत्ताओं या चेतन वस्तुओं में केवल इतना भेद है कि जड़ वस्तुएं बिना ज्ञान के सृष्टि के नियमों का पालन करती हैं । वह सृष्टि के वर्तमान नियमों में से चुन नहीं सकती कि मैं इसका पालन करूं और इसका न करूं। परन्तु धेतन सत्ताएं कई नियमों में से अपने लिये कुछ नियम चुन लेती है। और उन्हीं के अनुसार काम करती है। जैसे मैं यह जानता हूँ कि खेती के नियम पालने में खेत में गेहूं पैदा कर सकूँगा इस लिये में इन दोनों में से अपने मन माने नियम चुन लेता हूं। चाहे खेती करू। चाहे पान बताऊं परन्तु लकड़ी अपने लिये नियमों का निर्वाचन नही कर सकती उसका चुनाव नियम स्वयं करते हैं।" आदि । समीक्षा:---आगे आपने स्वयं यह सिद्ध कर दिया कि इनका इनका कल्पित ईश्वर जड़ है। क्यों कि पाप के कथनानुसार चेतन, नियमोंको अपने लिये चुन लेता है। अब यदि यह माने
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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