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________________ ... . .LI क्यों कि बिना प्रयोजन के म तो उस कार्य को करनेकी इच्छा ही होगी और न प्रवृत्ति । (२) इच्छा. (३) ज्ञान (४) प्रवृत्ति अर्थात् मानसिक व शारीरिक किया शारीरिक क्रियाको चेष्टा भी कह सकतेहै। जिसमें उपरोक्त बातें होंगी बही निमित्त कारण कहला सकेगा,इनमें यदि एकका भी अभाव होगा तो वह निमित्त कारण नहीं हो सकेगा। उपरोक्तसभी बातें मिल कर एक निमित्त कारण कहलाती है। पृथक पृथक नहीं इसके अलावा निमित्त कारण, कार्य में व्यापक नहीं होता। उपादान कारण ही व्यापक होता है । मकड़ी के जाले का दृष्टान्त और जीवात्मा का दृष्टान्त विषम है क्योंकि मकड़ी जालेमें व्यापक नहीं है अपितु उस जाल से हो । तथा जीव लोगो महाशयगण भी शरीर में व्यापक नहीं मानते अपितु उनके मतमें आत्मा अणु प्रमाण है। अतः यह भी दृष्टान्त उनके पक्ष का घातक है। इसका विचार फिर करेंगे 1 जैसे किसी मनुष्य को हजारों पदार्थों का ज्ञान है परन्तु वह ज्ञान मात्रसे ही निमित्त कारण नहीं बन सकता 1 यदि शामके साथ साथ उस कार्यको करनेकी इच्छाभो है फिर भा वह निमित्त कारण नहीं कहलाता। यदि इच्छा के साथ साथ मानसिक प्रवृत्ति न है (कार्यकरन के उपायोंका विचार) तो भी वह कर्ता नहीं हो सकता । अतः जब उससे शारीरिक क्रिया करके साधन आदि जुटाकर कार्य सिद्ध कर लिया उस समय वह कता या निमित्त कारण कहलाताहै। हमने ऊपर आस्तिकवादका प्रमाण दिया है उसमें भी उपाध्याय जो ने उपरोक्त कथन को ही पुष्टि की है । आप लिखते हैं कि--- "डाक्टर वार्डने कारण (निमित्त कारण) का सबसे अच्छा उदाहरण दिया है मनुष्यको इछा शक्तिकी नसके शारीरक व्यापारमें प्रवृत्ति' पृ०६५
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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