SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 804
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ही नहीं है अपितु उनमें आत्मा भी है, तथा जिस प्रकार मनुष्यादि का शरीर आत्मा बीज द्वारा स्वयं निर्माण कर लेता है उसी प्रकार वृक्ष प्रादि की आत्माये भी उस उस शरीर का निर्माण यथा बीज कर लेती हैं। अथवा यूं कह सकते हैं, कि आत्माके योगसे पुगदल (कर्माण वर्गणा ) स्वय शरीर रचना करता है। इसका विशेष विवेचन कर्म फल प्रकरणमें मर चुके हैं । अागे आप लिखते हैं कि(३) कृति, अर्थात् क्रिया या प्रयत्न । ज्ञान चिकीर्षा तथा कृति में भी कारण कार्य का सम्बन्ध है। क्योंकि कोई क्रिया विना इच्छाके नहीं हो सकती और जब तक उस वस्तु का ज्ञान न हो जिस पर कर्मा की क्रिया पड़ती है उस समय तक उसमें इमचा भी नहीं हो सकती। एक प्रकारसे इच्छा शक्तिको भी कृर्तृत्वका विशेष लक्षण मान सकते हैं, क्योंकि जहां इच्छा है यहां शान पहले अवश्य रहा होगा और वहीं क्रिया के भी होने की सम्भावना है। इस प्रकार इच्छा शक्तिका कारणत्व' से विशेष सम्बन्ध है। जिस घटनामें इच्छा शक्ति विद्यमान नहीं होती उसको हम कारण नहीं कहते चाहे वह घटना दूसरी घटनासे पूर्व एक बार देखी गई हो अथवा कई बार । कल्पना कीजिये कि हम छतकी कड़ीसे लगातार सैकड़ी बार मिट्टी गिरते देखते हैं। परन्तु हमारा कभी यह विचार भी नहीं होता कि मिट्टी गिरानेका निमित्त कारण छतकी कड़ी है । परन्तु यदि एक बार भी हम किसी मनुष्यको छतसे मिट्टी गिराते देखते हैं तो झट कहने लगते हैं कि मिट्टी इस मनुष्य ने गिराई है । क्यों कि पहले उदाहरण में इच्छाशक्ति उपस्थित नहीं है और दूसरेमें उपस्थित है । प्रत्येक कार्य के लिये निमित्त कारण की आवश्यकता, और
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy