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________________ ( २) समीक्षा-उपरोक्त विवेचनसे यह सिद्ध है कि निमिति कारण के विषय में भी अनेक विवाद है । अतः जब तक यह सिद्ध नहो जाये कि निमित्त कारण किसे कहते हैं. उस समय तक ईश्वरको निमिति कारए बताना साध्यसम हेत्वाभास है । तथा च इन सब बातोंका उत्तर विस्तारपूर्वक दिया जाचुका है । तथा यहां भी संक्षेप में उत्तर लिख देते है कि ये सब प्रश्न उसी समय उपस्थित होसकते हैं जब कि यह सिद्ध हो जाये कि यह जगत अनादि नहीं है अपितु किसी समयविशेष में बना है। परन्तु यह सिद्ध कर चुके हैं कि यह जगत अनादि निधन है, न कभी बना और न कभी नष्ट ही होगा। यह न माना जाये तो भी ईश्वर का है यह कैसे सिद्ध हो गया ? क्यों कि ईश्वर सर्व व्यापक एवं निष्क्रिय माना जाता है श्रतः सर्थ व्यापक कर्ता नहीं हो सकता यह हम प्रबल प्रमाणों और अकाट्य युक्तियों से सिद्ध कर चुके हैं। रह गया अकस्मात बाद सो हम तो अकरमान् के सिद्धान्त को ही नहीं मानते. अतः हमारे लिये यह प्रश्न ही व्यर्थ है । यूनानी भाषा के या सेक्सपीयर के नाटक को तथा प्रपंच परिचय के श्लोक अक्षरों के संयोग से स्वयं नहीं बने और न बन सकते है यह तो ठीक है और ऐसा मानना कि ये सब स्त्रय बन गये अन्ध विश्वास है तो यह मानना कि सब निराकार ईश्वर ने बनाये हैं. यह महा अन्ध विश्वास है । हम पहले जिख चुके हैं कि मनुष्यकृत कार्यों को प्राकृत कार्यों के साथ नहीं मिलाया जा सकता। इसी प्रकार प्राकृतिक कार्यों को भी मनुष्य कृत नहीं कहा जा सकता। यदि यह ने माना जाय तो पशु पक्षी, कीट, पतंग, दीमक श्रादिक कार्यों को भी मनुष्य कृत कहाजा सकेगा क्यों कि कार्यत्व सब जगह समान हैं । अतः जो मखोल लड़ाई है वह उपहास, मुखों का मनोरंजन मात्र है । वृक्ष व फल, फूल आदि केवल जड़ . . . - ...-
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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