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________________ ( 138 ) इनमें संयोग और विभाग गुरु क्रिया जन्य हैं। तथा बुद्धि यत्न व इच्छा केवल निमित्त कारण होने वाले गुण हैं। तथा यह भी स्मरण रखना चाहिये कि वैशेषिक के मतानुसार बुद्धि क्षे ही प्रकारकी है (१) अनुभवात्मक (२) स्मृति | इन दोनोंके भी प्रमात्मक प्रमात्मकदो भेद है। आशय यह है नैयायिक, ईश्वरमें ज्ञान इच्छा और प्रयत्न, आदि गुरु मानते हैं । तथा ईश्वरको जगत का प्रयोजक कर्त्ता मानते हैं। उनका कथन है कि जिसप्रकार कुम्हार बुद्धि पूर्वक इच्छा सहित प्रयत्न करके घड़े को बनाता है। उसी प्रकार ईश्वर भी जगत को बुद्धि पूर्वक इच्छा सहित क्रिया करके बनाता है । इस लिये ये लोग ईश्वर को ब्रह्माण्ड कुलाल कहते हैं ।" समीक्षा -- जिस प्रकार मीमांसा दर्शनकारने तथा उनके भाष्य कारों ने ईश्वर के कर्त्तापने का खंडन किया है इसी प्रकार वेदान्त में भी व्यास जी ने ईश्वर का खंडन किया है । यथा— अधिष्ठानानुपपत्तेश्व ॥ २ । २ । ३६ इस सूत्र का श्री शङ्कराचार्य ने दो प्रकार से अर्थ किया है। ** ( १ ) तार्किकों की ईश्वर विषयक कल्पना भी अयुक्त है ( उनका कथन है) कि जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को लेकर ( अपने कार्य में) प्रवृत्त होता है। उसी प्रकार ईश्वर भी पुद्गल प्रकृति या परमाणुओं को लेकर ( जगत रचना में) प्रवृत्त होता है। परन्तु यह कल्पना ठीक नहीं। क्योंकि निराकार ईश्वर परमाणुत्रोंसे नितान्त भिन्न होनेके कारण ईश्वर की प्रवृत्ति का श्राश्रय नहीं हो सकते। (२) अधिष्ठान का अर्थ शरीर है और ईश्वर के शरीर नहीं है, इस लिये यहां अधिष्ठानकी अनुपपत्ति अर्थात् उपलब्धि न होनेसे वह कर्त्ता नहीं होसकता। अभिप्राय यह है कि कर्ता की व्याप्ति शरीर के साथ है । परन्तु आप लोग ईश्वर के शरीर नहीं मानते
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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