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________________ इहेदानी चतुर्णा महाभूतानां सृष्टि संहार विधि रुच्यते । ब्राह्मण मानेन वर्षाले वर्तमानस्य दाणे अपवर्गकाले मंमार खिमानां मर्वेषां प्राणिनां निशि विधमार्थ सकल भुवनपतेः महेश्वरस्य संजिहीर्षासमकाले शरीरेन्द्रिय महाभूतोपनिवन्धकाना सर्वात्मगताना अदृष्टानां वृत्तिनिरोधे सति महेश्वरेच्छात्माणु संयोगजकर्मभ्यः शरीरेन्द्रियकारणाणुविभागेभ्यः तत् संयोग निवत्ती तेषां प्रापरमाएयन्ती विनाशः तथा पृथिव्युदकज्वलनपवजानापि महाभूतानां अनेनेव क्रमेण उत्तरस्मिन् सति पूर्वस्य नाशः ततः प्रविभक्ताः परमाणको अवतिष्ठन्ते । ___ श्री प्रशस्तपादाचार्य के विचार से सृष्टि के प्रारम्भ में महेश्वर सम्पूर्ण जगत के पितामह ब्रह्मा को उत्पन्न कर संसार संचालनका सारा भार उसको सौंप देते हैं। इस ब्रह्माकी आयु अझ परिणाम से सौ वर्ष की होती है। सौ वर्ष समाप्त होने पर ब्रह्माका अपवर्गकाल प्राजाता है। और उसके साथ ही सृष्टिकी प्रायु भी समाप्त हो जाती है। इस समय तक निरन्तर संस्करण-चक्र में पड़े जीव भी बहुत खिन्न हो उठते हैं । इस लिये उनको विश्राम के लिये अवसर देने की आवश्यकता भी प्रतीत होने लगती है। इन सब कारणों के एकत्र हो जानेसे इस अवसरपर महेश्वरके हृदय में संसार संहार की इच्छा उत्पन्न होती है । उस संहारेच्छा के उत्पन्न होने के साथ ही संसारी जीवों के धर्माधर्म की फल प्रदान की शक्ति भा समास हो जाती है, जिसके क.रण ससारको अगली वृद्धि विलकुल रुक जाती है । इधर अब तक के वर्तमान विश्व में महेश्वर की संहारेच्छा जीवात्मा और अणुओं के सयोग विशेष से उत्पन्न
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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