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________________ ( ७४१ ) लघुतम भाग को वैज्ञानिक भाषा में मालीक्यूल Molecules कहते हैं। इस अवस्था तक पदार्थका अपना स्वरूप स्थिर रहता है । परन्तु इसके आगे विश्लेषण - पथमें एक पग भी और बढ़े तो उसके साथ ही पदार्थका अपना स्वरूप क्षीण हो जाता है और उसके स्थान पर दो भिन्न भिन्न तत्वों के परमाणु रह जाते हैं जिनके सम्मिश्रण से उस पदार्थ के अरंतु या मालोक्यूलकी रचना श्री । उदाहरं के लिये यदि इसी विश्लेषण नीतिका आश्रय लेकर जलका विश्लेषण किया जाय तो उसके लघुतम रूपमें जलके मालीक्यूल या जलके अणुओंकी उपलब्धि होगी, हरम्तु यदि विश्लेषण-पत्र में एक कदम और उठाया जाय, तो जलके मालीक्यूलसका भी विश्लेषण होकर दो भिन्न तत्वोंके तीन परमागु शेष रह जायेंगे, जिनमें ये दो परमाणु हाईड्रोजन के होंगे और एक परमाणु आक्सीजनका हाईड्रोजन और आकसीजन के भिन्नजातीय तीन परमाणुओं का इस नियत अनुपात से सम्मि श्रण होने पर जलको उत्पत्ति होती है। विश्लेषणात्मक परीक्षण के इस अन्तिम परिणाम से रूप में उपलब्ध होने वाले द्रव्य को ही परमाणु शब्द से निर्दि किया जाता है। यह परमाणु - विश्लेषण की चरम सीमा है, उसके मागे विश्लेषण हो सकना सर्वथा असम्भव है। भौतिक तत्वों के यो परमाणु इस समय विश्व के उपादान कारण हैं । पाञ्चात्य वैज्ञानिकों के अनुसार यह परमाणु ८० प्रकारके होते हैं। भारतीय दार्शनिक साहित्य में इस परमाणुवाद के जन्मदाता वैशेषिक दर्शनके आचार्य महर्षि कणाद है। वैशेषिक दर्शन के प्रमाण भूत भाष्यकार श्री प्रशस्त पादाचार्य ने इस परमाणुवाद का स्वरूप बड़े सरल और सुन्दर रूपमें स्थापित किया है। उनके शब्द इस प्रकार हैं
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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