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________________ भारतीय दर्शनकारों ने अलग : पांच भूतों की कल्पना नहीं की थी। अपितु उनके भत में श्रात्मा ओर जड़, ये दो ही कारण इस सृष्टि के थे। जड़ के परमाण वे पृथक र जाति के नहीं मानते थे, अपितु मूल परमाणु एक ही प्रकार के माने जाते थे उन्हीं के संयोग से अग्नि, वायु, जल, पृथिवी आदि बनते थे। मूल पांच भूतों की कल्पना अवैदिक एवं नवीन और वर्तमान विज्ञान के विरुद्ध है । इस विषय में जैन सिद्धान्त ही सर्व श्रेष्ट है। जब इन ईश्वर भक्तों ने जगत् रचने की कल्पना की तो एक झूठ को सिद्ध करने के लिये सैकड़ों अन्य झूठी कल्पनाएं भी इन्हें निर्माण करनी पड़ी। उनमेंसे एक युगोंकी कल्पना है जिसकी पोल छम पहले खोल चुके हैं। दूसरी गप्प इनको तिब्धतपर सृष्टि उत्पन्न करनेकी है । अाज विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह हिमालय आदि जो कि सबसे ऊँचे पर्वत हैं. ये सबसे बादमें बने हैं। इनके स्थानमें समुद्र लहारहा था। तथा आज जहां समुद्र हैं वहां किसी समय नगर अस रहेथे । इसी प्रकार संसारमें परिवर्तन होता रहता है. परन्तु मूलतः इन पृथिवीं आदि का कभी नाश नहीं होता। रेडियम "यह पृथ्वी कितनी पुरानी है यह सिद्ध करने वाले वैज्ञानिकों ने रडियम नामक पदार्थ की खोज की है। रेडियम युरेनियम नामक पदाथसे निकलता है अर्थात युरेनियम रेडियम रूपसे परिवर्तित होता है। एक चांवल भर रेडियम तीस लाख चांवल भर युरेमियमसे प्राप्त होता है। युरेनियम के एक परमाणुको रेडियम सपमें परिणत होने में सात अरब पचास कडोर वर्ष लगते हैं ऐसा वैज्ञानिकोंक। मत है। इस रेडियमसे नासूर आदि रोगोंका नाश होता है । जो रोग बिजलोसे भी नष्ट नहीं होते थे रेडियमको शक्ति सं नष्ट होजाते हैं । यह रेडियम नामक धातु दुनियामें बहुत अल्प
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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