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________________ wai ) इस प्रकार वैदिक साहित्य मूलभूत एक ही तत्व को मानता है उसके पश्चात् तीन तत्वों की कल्पना हुई। और फिर चार भूत माने जाने लगे । पुन: पांच तत्व का सिद्धान्त प्रचलित हो गया । परन्तु आज भौतिक विज्ञानने यह सिद्ध कर दिया है कि पांच प्रकार के पृथक पृथक परमाणु नहीं हैं। अपितु मूल परमाणु एक ही प्रकार के हैं। और अग्नि आदि सब एक ही वस्तु के विकार हैं वास्तव में सांख्य शास्त्र का भी यही सिन्त था. वह इन पा महाभूतों को मूल तत्व नहीं मानता था अपितु इनको उत्पन्न हुआ मानता था । ये सब एक ही के विकार हैं ऐसा उनका स्पष्ट मत था । हां प्रकृति को कपिलदेव अवश्य त्रिगुणात्मक मानते थे परन्तु गुण भी मूल में नहीं थे, उसकी विकृति अवस्था में थे क्योंकि मूल प्रकृति तो अव्यक्त है । श्रव्यत्तमाहुः प्रकृति पर प्रकृति वादिनः तस्मात्महदसमुत्पन्नं द्वितीयः राजसतमम् । अहंकारस्तु महतस्तृतीयमिति नः श्रुतम् पंचभूतान्यहंकारादाहुः सख्यिात्मदर्शिनः ॥ शान्तिपर्व ० ३०३ . अर्थात्- सांख्यशास्त्रकार परा प्रकृति को अव्यक्त कहते हैं । तथा उस परा प्रकृति से महत् उत्पन्न हुआ, और महान से अहंकार पैदा हुआ तथा उससे पांच सूक्ष्म भूत उत्पन्न हुये। यहां स्पष्ट ही एक मूल तत्व माना है। जिसका नाम यहां परा प्रकृति अथवा अव्यक्त है। उसके पश्चात् उससे महत् और महन से अहंकार और उससे पांच सूक्ष्मभूल की उत्पत्ति बतलाई. श्रतः स्पष्ट है कि सांख्य में पांचभूत मूल तत्व नहीं है अपितु अव्यक्त ( पुद्गल ) का विकार है। जैन सिद्धान्त भी इनको विकार हो मानता है । इस विषय पर "विश्व विवेचन" नामक प्रन्थ में विशेष प्रकाश डालेंगे। यहां तो संक्षेप से इतना लिखना था कि प्राचीन
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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