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________________ गति वैज्ञानिकों ने अगुओंकी गति वेगवती बतलाई है। प्रत्येक अणु एक या अधिक परमाणुओंका बना होता है. और प्रत्येक परमाणु बड़े भरकर वेग से परिक्रमण करता रहता है। जहां पृश्रिी सूर्य की परिक्रमा १|| मील प्रतिसे केंड करती है वहां एक एक परमाणु अनेक सहस्र मील प्रति सेकंडके हिसाबसे प्रदक्षिणा करते रहते हैं। इस तरह ब्रह्मांडक सूर्यसे विशाल काय पिण्डोंसे लेकर अणुवीक्षणा यन्त्रसे भी अनावाच्य परमाणुओं तक गति शील हैं। और गति भी अधिक भयानक और निरन्तर । परन्तु सुक्ष्म परमाणुओंकी गतिसे ही गतिशीलता पूर्ण नहीं हो जाती. स्क परम.शु अनेक विद्युत कणोंका बना हुआ है । विद्युत्कण दो प्रकारके हैं । ऋणानु और धनाणु 1 धनाणु के चारों ओर ऋणानु प्रायः एक सेकंड में एक लाख अस्सी हजार मील तक वेगसे परिक्रमण करते हैं। और धनाशु ? धनारण तो परमाणुका केन्द्र है और वही तो अणु में धनासूत्रों को लिये हुए. उसी प्रकार चक्कर लगा रहा है जैसे गृहोपग्रहों को लिये हुए कृत्तिकाओं की प्रदक्षिणा सूर्य कर रहा है । ऋणानुओंमेंसे अनेक टूट दूद कर परमाणु मण्डल तो दूर भी भागते जाते हैं। और दूसरे परमाशुओंसे मिल कर भी अपने तन वेगको परित्याग नहीं करते । थे ऋणानु हो जो छिटकते हुए चलते हैं धारारूपसे. सूर्यसे, अमि से या विशतसे आते हैं। यहां तक संसारके वैज्ञानिकों का सिद्धान्त है । यह सब रामदासी गौड़ M. A. कल्याण के शक्ति अंकम है परमाणुओं का संयोग (१) परमाणुओंका संयोग सरल संख्या ही हाना है जो आठसे अधिक कभी नहीं बढ़नी ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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