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यूरोपीय-दर्शन यूरोपके प्रसिद्ध दार्शनिक मने ईश्वर के विषयमें लिखा है कि जय ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं देखा जाता तो उसके होनेका प्रमाण क्या है ? उसके गुण आदि । किन्तु ईश्वर के स्वभाव, गुण, प्राज्ञा और पविष्य योजना के लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है जिसस हम उनको जान सके । कार्य कारण के अनुमान द्वारा हम ईश्वर को सिद्ध नहीं कर सकते जब हम एक घरको देखते हैं तो निश्चित रूपसे यह समझ लेते हैं कि इसका कोई कारीगर बनाने वाला था क्योंकि हमने सदा मकान जाति के कार्यों को कारीगर जाति के कारणों द्वारा सम्पन्न होते देखा है। किन्तु विश्वजातिक कार्योको ईश्वर जाति के कारणों द्वारा सम्पन्न होत हमने नहीं देखा. इस लिये यहाँ घर और कारीगरके दृष्टान्तसे ईश्वरको सिद्ध नहीं कर सकते । आखिर अनुमानको जिस जाति के कार्यको जिम जाति के कारण से बनत देखा गया है. उसी जातक भीतर बहना पड़ता है।
जगत पूर्ण नहीं अपूर्ण करता नथप एवं विषमतासे भरा हुआ हैं। और यह भी तब जब कि ईश्वर का अनन्तकाल से अभ्यास करते हुय वेदतर जगत बनाने का अभ्यास हुअा था । एसे जगत का कारण ईश्वर लोक या कोई कर अथवा संघर्ष प्रेमी हो Ent यूरोपके एक अन्य पार्शनिक ने ठीक हो कहा है कि ईश्वरको ठक पीट कर प्रत्येक दाशनिक अपने मन के अनुकूल उसका निवामा करना चाहता है । परन्तु प्रयोजन सबका एक ही है कि इस बंचार को खतरे से बचाना।
तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार भारतीय दर्शनकारोंमें मतभेद है उसी प्रकार पश्चिमीय देशोंके शानक भी किसी एक परिणाम पर नहीं पहुंचने । काई ईश्वरको मानताहै कोई नहीं मानता। कोई चलना अतथाई तो काई जहादतवादी है। कोई ईश्वरको साकार