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________________ (use) सत्य और सौन्दर्य से भरपूर हैं, परन्तु ज्ञानेन्द्रियोंके जगत् में इनका अभाव है ।" वह धर्मके आदर्शको सर्वप्रधान बतलाते हुए उस आदर्श की सत्ता ईश्वरको समझता था। यह समाजको बड़ी महत्ता देता था, और व्यक्ति के कुछ अधिकार नहीं समझता था. उसका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति समाजके लिये जीता है। अफलातुनको नानादि स्वीकार था। अरस्तू ३२४-३२२ ई० पूर्व -- जीवात्मा संबंधी अरस्तू के जो विचार हैं उनके तीन भाग हैं ( १ ) एक भाग जीवनका वह हैं, जो वनस्पतियों और पशु पक्षियों में भी पाया जाता है । (२) दूसरा भाग इन्द्रिय ज्ञान का है. वह केवल पशु पक्षियों में पाया जाता है । ( ३ ) तीसरा भाग बुद्धि का है जो केवल मनुष्यों को मिलता है मनुष्यों में आत्मा का भाग पितासे आता है। इस प्रकार अरस्तू मानता हैं कि मनुष्य की आत्मा में एक भाग नाशवान है और दूसरा भाग अमर । वह भाग जो अमर है. बुद्धि है. और वह बुद्धि ( ज्ञान की शक्ति ) कामनाओं से उच्च आसन रखती हैं । जीव और शरीर के सम्बन्धमें उसका विचार यह कि शरीर सम्बन्ध ठीक वैसा ही है जैसा आकृतिका प्रकृतिदृष्टि का चक्षुओं और असली का अप्रगट से है। जीवात्मा जो आकृति, रूप और शरीरका वास्तविक अंश है न तो स्वयं शरीर ही है और न बिना शरीर के विचार में आने योग्य है। डाक्टर गोम्प ने लिखा है कि पांचवी शताब्दी के अन्त में जीवात्मा सम्बन्धी अरस्तू के मन्तव्य एम में इस प्रकार समझे जाते थे कि बुद्धि पूर्वक नियम मनुष्य में जन्म से पहले अंकुरित होते हैं १ :
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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