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________________ "कविक्षः शरशाधि, मिना पायेधादे । नन्वेवमीश्वरो नस्याव, पारतन्ध्यात् कुविन्दवत् ॥" यदि सृष्टिकर्ता जीवोंके किये हुए पूर्व कर्मोंके अनुसार उनके शरीरादि बनाता है तो कोको परतन्त्रताके कारण वह ईश्वर नहीं हो सकता है जैसे कि जुलाहा। अभिप्राय यह है कि जो स्वतन्त्र है समर्थ है उसीके लिये ईश्वर संज्ञा ठीक हो सकती है । परतन्त्र के लिये नहीं हो सकसी जुलाहा यद्यपि कपड़े बनाता है, परन्तु परतन्त्र है, और असमर्थ है. इसलिये उसे ईश्वर नहीं कह सकते। ईश्वर के प्रति श्री सम्पूर्णानन्दजी के विचार निर्धन के धन और निर्बल के बल कोई भगवान हैं ऐसा कहा जाता है। यदि है. तो उनसे किसी बलवान् या धनी को कोई आशंका नहीं है । वह उनके दरबार में रिश्वत पहूंचानेकी युक्तियां जानता है । पर उनका नाम लेने से दुर्बल और निर्धनका क्रोध शान्त हो जाता है । जो हाथ बनाने वालोंके विरुद्ध उठते हैं. वह भगवानके सामने बँध जाते हैं । पाखीकी क्रोधाग्नि प्रासू बनकर छलक जाती है । वह कमर तोड़कर भगवान्का आश्रय लेता है । इसका परिणाम कुछ भी नहीं होता। उसके अर्त हदयसे उमड़ी हुई कम्पित स्वर लहरी आकाश मण्डल को चीर कर भगवान के सूने सिंहासनसे टकराती है । टकराती है. और यशे की त्यों लौटती है । कबीर साहनक शब्दों में यहां कुछ है नहीं आज हजारों कुलबधुओंका सतीत्व बलात् लुट रहा है, हजारोंको पेटको ज्वाला बुझाने के लिये अवलाका एकमात्र धन बेचना पड़ रहा है। लाखों बैंकस, निरीह राजनीतिक और आर्थिक दमन और शोषण की
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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