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________________ श्रासतक ऐसी कोई जाँच कमेटी बनाई, जिससे यह जाना जा सके कि इस व्यवस्था से उसने कितने जीयों की उन्नति की । यदि कोई जांच कमेटी नहीं बनाई तो ये कैसे जाना जा सके कि यह सब खुराफात जीव की भलाई के लिये है। ___श्री स्वामी जी महाराज ने एक और युक्ति देनेका भी साहस किया है. सत्यार्थप्रकाश के १२ वें समुल्लास से [मद { शराव ) के नशे के समान कर्म स्वयं फल दे देते हैं ? ' का उत्तर देते हुवे लिखा है कि जो गेसा हो तो जैसे मद पान करने वाले.. को मन क्रम चढ़ता है और अनभ्यासी को बहुत चढ़ना है । वैसे बहुत पाप करने वाले को फल कम प्राप्त होगा और कभी कमी थोड़ा थोड़ा पाप पुण्य करने वालों को अधिक फल होना चाहिए !] ___ यहां पर स्वामी जी ने. 'कर्म का फल स्वयं प्राप्त होजाता है इस सिद्धान्त को तो स्वीकार कर लिया। रह गया प्रश्न न्यून और अधिकका. सो न्यून और अधिक तो सापेक्ष शब्द हैं। किसी दृष्टि से एक ही वस्तु छोटा है और किसी से बड़ी । इस लिये न्यूनाधिक की कोई विशेष यान नहीं है। हम पहले लिम्ब चुके हैं कि प्रत्येक कर्म के अनेक फल होते हैं अर्थात- --एक क्रियः को एक हो प्रतिक्रया हो ऐसा कोई नियम नहीं है। अत: कम कपः क्रियाका स्वगत परगन आदि अनेक प्रतिक्रियाएं होती है जिनका विस्तारपूर्वक हम पहिले वर्णन कर चुके हैं। अतः शराब पीने ऋय फल नशा हो नहीं अपितु नशा मा एक फल है और भी अनेक फल हैं जैसे अब वह शगदके बनारह नहीं सकता उसके लिये वह चोरी करता है भीख मांगता है श्रादि अनेक पाप करता है। शरःव. ममम कर कोई मला आदमी उसे अपने पास नहीं बैठने देना. काई उसका विश्वास नहीं करना । अतः वह सत्र जुअा आदि व्यसनों में फंस जाना है। जुए में हार जाता है तो
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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