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________________ ( ६:४३ ) ऐसा जबरदस्त साता बेदनीय (सुख दायक ) कर्म बांधा कि जिसने पहले के दुख दायक कर्म को भी सुख बना दिया । इसी तरह बाँधे हुए कर्मोंके विपरीत ( खिलाफ ) काम करने से कर्मोकी तासीर (प्रकृति) पलट जाती है । तथा उनकी मियाद (स्थिति) तथा शक्ति घट जाती है और बांधे हुए कर्मके अनुकूल ( मुआफिक) कार्य करते रहने से बांधे हुए कम में शक्ति अधिक हो जाती है। उनकी स्थिति ( मियाद ) भी अधिक लम्बी हो जाती है। कोई २ ऐसे बज्र कर्म भी बांध लिये जाते हैं जिनके बांधते समय घोर पाप रूप या पुण्यरूप मानसिक विचार वचन या शारीरिक क्रिया होती है कि उन कमोंमें ऐसी अचल शक्ति पड़ जाती है जिसका जग मां हिलाया चलाया उलटा पलटा नहीं ज सकता | अतः वे अपना नियत ( मुकर्रर ) फल देकर ही जीव का पीछा छोड़ते हैं। ऐसे कर्म "निकाचित" कहलाते हैं। कर्म की तासीर (प्रकृति) बदल जानेको संक्रमण" तथा स्थिति अनुभाग घट जानेको अपकर्षण" और बढ़ जानेको "उत्कर्ष" कहते हैं । · काल को भी कारण माना है संचितानां पुनर्मध्यात् समाहृत्य कियत्किल, देहारम्भे चसमये कालः प्रेरयतिीय तत्" देवि भागवत स्कंध ६-१०-६-१२ अर्थात् संचित कर्म से जिस निर्दिष्ट अंशको भोगने के लिये नये जन्मसे पहिले काल प्रेरणा करता है, वही प्रारब्ध कर्म है। अतः पुराणकार भी कर्म फल देने के लिए ईश्वरकी सत्ता की आवश्यकता नहीं समझते I
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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